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नीरो, वंशी और रोम

niro, vanshi aur rom

राकेश रंजन

राकेश रंजन

नीरो, वंशी और रोम

राकेश रंजन

और अधिकराकेश रंजन

    जिस समय रोम जल रहा था

    उस समय नीरो वंशी बजा रहा था

    इस बात से दग्ध और मर्माहत रोम को अब लग रहा था

    कि उसको जलाने में उसके हीरो नीरो का ही हाथ था

    रोम के इस लगने को दूर करने

    और उसके प्रति अपना अपार प्यार दरसाने के लिए

    नीरो ने इतिहास के सबसे सुविराट रात्रिभोज का आयोजन किया

    जिसमें रोम के अनेक-अनेक कवि, कलावंत

    गायक, नायक, लायक़ पत्रकार, टीकाकार, विचारक और संत

    सभी मठों के महंत नीरो-निमंत्रण पाकर हर्ष-गदगदाकर

    धन्य भाग हमारे का अजपा जाप जपते आए धाकर

    नीरो पहले से खड़ा था

    आगत-शुभ स्वागत में मुखड़े पर मुग्ध-मुदित मुद्रा सजाकर

    निज हृदयकमल खिलाकर

    वह रात भर अपने उन चंद्रमुख महंतों का

    समुचित सत्कार करता रहा

    अपने कंजपदों से घूम-घूमकर कंजभ्रूभावों से पूछ-पूछकर

    उन्हें खिलाता-पिलाता रहा और रात भर

    अपने कंजलोचनों से मंद-मंद मुसकाते हुए

    कंजमुखकरकंज से मधुर-मधुर वंशी बजाता रहा

    उस भोजरात्रि को इतिहास की सबसे उज्ज्वल ज्योतिरात्रि के रूप में

    अमर बनाने को नीरो इस क़दर कटिबद्ध था

    कि वह वहाँ रात भर आस-पास सुंदर-सुरोचक चिताएँ रचवाता रहा

    और उन पर रोम के तमाम बचे-खुचे, भूखे-नंगे, बेजान-बेज़ुबान

    किसानों, मजूरों और दासों को ज़िंदा जलवाता रहा

    उस अद्भुत प्रकाश-व्यवस्था में रोम के दमकते हुए दिव्यदेह महंत

    षड्रस व्यंजनों का सीत्कार-ध्वनित परमानंद उठाते रहे और साथ-साथ

    भीषण चीत्कार-क्वणित बैकग्राउंड म्युजिक पर बजती हुई

    नीरो की मधुर-मधुर वंशी को सुनते हुए निद्राकुल नैन मूँद

    रसनिष्पत्ति की चरमावस्था का आभास कराते रहे

    भोजन-योजन-उपरांत निशांत में विदाकाल

    नीरो का विशाल कोमलकांत हृदय द्रवीभूत हो गया

    और थरथरदेह-झरझरनैन-घरघरकंठ सहित

    भूपवर-अनूपकर होकर उसने उन सबको स्मृतिस्वरूप

    एक-एक वंशी भेंट की जिन्हें बजाते हुए वे सब निज-निज घर लौटे

    लौटकर उन सबने मिलकर एक सामूहिक प्रस्ताव पारित किया

    जिसमें यह कहा गया था कि रोम को जलाने में उसके हीरो नीरो का

    कोई हाथ नहीं था और उसका कोई हाथ हो भी कैसे सकता था

    क्योंकि जिस समय रोम जल रहा था उस समय वह

    अपने दोनों ही हाथों से मधुर-मधुर वंशी बजा रहा था

    उस प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि नीरो एक महान शासक है

    और वंशी बजाना मनुष्य का एक महान कर्तव्य है

    और रोम के जीवन का सबसे महान काल वह होगा जब वह भी

    वंशीवादन-कला में लीन-महाप्रवीण हो जाएगा

    उस प्रस्ताव से सत्यसार जानकर रोम का वह लगना दूर हो गया

    और वह नीरो के प्रति अतीव आस्था-श्रद्धा से भरपूर हो गया

    फिर वह अपनी आत्मा के शोक-संशयलोक से निकल पड़ा

    और वंशीवादन की महान कला सीखने को चल पड़ा

    अनेक वर्षों की अथक-अबाध साधना

    और प्रखरप्राण महंतों की प्रेरणा से रोम

    नीरोछाप वंशीवादन-कला में सिद्ध हो गया

    और उसकी सिद्धि का अन्यतम दृष्टांत यह प्रसिद्ध हो गया

    कि वह धू-धू जलते हुए, गलते हुए

    धुआँ-धुआँ होते और एक बूँद जल को बिकलते हुए

    मधुर-मधुर वंशी बजा सकता था नैनों को मूँदकर मचलते हुए

    एक वैसी ही वंशी अगर मिल जाती मुझको भी, मैं भी बजाता

    खाता और सोता, सुखिया मैं होता

    दुखिया बन ऐसे जागता, ऐसे रोता

    कबिरा की टोली में खँजड़ी पीटता, बिरहा गाता!

    स्रोत :
    • रचनाकार : राकेश रंजन
    • प्रकाशन : हिंदी समय
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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