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अंतिम रात

antim raat

महेश वर्मा

महेश वर्मा

अंतिम रात

महेश वर्मा

अंतिम वाक्य बोला जा चुका

अंतिम प्रश्न के अंतिम उत्तर में

आख़िरी दरवाज़ा बंद हो चुका

उधार की शराब और उधार की रात के लिए ये शहर जैसे है ही नहीं

इतना ज़्यादा नहीं है यह शहर

कि अंतिम सीढ़ियाँ जो मैं उतर रहा हूँ के बाहर

कोई पृथ्वी नहीं होगी पाँव रखने को

अँधेरे की गहराई होगी बाहर उसके अतल में गिरने को

घटिया टॉकीज़ के अंतिम शो के घटिया दृश्य में

गिरते हुए चीख़ने की आवाज़ मद्धम पड़ती हुई अस्त हो रही

मध्यांतर रात का है

अंतिम सपनों के बदले मिली अंतिम लकड़ियों की

अंतिम राख को अंतिम हवा उड़ा के ले जा चुकी

सपने दर्ज करने का काग़ज़ सट्टा-पट्टी लिखने के लिए दे चुके बहुत पहले ही

मैं बराबर तेरह के अंक पर दाँव लगाता था

वहाँ तो मेरी नास्तिकता ने भी साथ नहीं दिया कहते–कहते

पागल होने वाला मेरा दोस्त ज़मीन पर कोयले से लिख देता है १३ हिंदी अंकों में

इस तरह कि तीन की पूँछ लहराकर घूमती हुई, सूर्य को सही दिशा बता देती है

पागल तो वह भी हुआ जो अपना नंबर तोते से पूछता था, फिर तोता किताब से

ना नौ, सात, तेरह, तीन

धार्मिक भी मारे गए अधार्मिक भी

अंतिम संदूक़ समुद्र में फेंका जा चुका जिसमें अंतिम किताबें थीं

आख़िरी सिक्के के बदले मिला नमक का अंतिम कण

आँसुओं के नमक से महँगा है, इसके बाद नमक

सिर्फ़ ज़िंदगी के बदले मिलेगा प्राचीन तुला पर तौलकर

अंतिम स्मारक ढहाया जा चुका इतिहास का

मिथक के अंतिम नायक का देवालय गढ़ रहा शिल्पी

मरकर किसी पत्थर पर ढह चुका है।

स्रोत :
  • पुस्तक : धूल की जगह (पृष्ठ 33)
  • रचनाकार : महेश वर्मा
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2018

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