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नींद में जीवन

neend mein jiwan

उद्भ्रांत

उद्भ्रांत

नींद में जीवन

उद्भ्रांत

और अधिकउद्भ्रांत

    जन्म के समय

    आँखों थीं बंद मगर

    जाग रहा था मैं

    आँखें खुलते ही

    आने लगी

    नींद

    नींद में ही जीवन

    अंततः जगे

    विस्फारित आँखें

    मलते, हिलाते हाथ

    मुँह बिसूरते

    लपकते प्रकाश-गति से

    श्याम विवर में

    होते अदृश्य।

    स्रोत :
    • पुस्तक : अस्ति (पृष्ठ 466)
    • रचनाकार : उद्भ्रांत
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस
    • संस्करण : 2011

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