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नींद में दरिया

neend mein dariya

पद्मा सचदेव

पद्मा सचदेव

नींद में दरिया

पद्मा सचदेव

और अधिकपद्मा सचदेव

    मीठी-मीठी नींद में बहता है इक दरिया

    जैसे धीरे-धीरे कोई झील गाए

    झील तो सबकी है उसका कौन है

    कोई चलता पीछे-पीछे

    कोई आगे चल रहा है धीरे-धीरे

    दरिया तो बस धीरे-धीरे पाँव रख कर जाता है

    इसमें बहती हैं कहीं कोई लकड़ी, कोई पत्ता, कोई टहनी

    कोई मानुख सुस्ती का मारा हुआ

    सीधा लेटा पानी में तैर रहा हो जैसे

    जैसा कोई पुतला कोई तीला अटका है कहीं

    मछली जाती है तो सोया हुआ यह पानी चौंक जाता है

    जैसे बहती हुई यह हवा रुक जाए कहीं पर

    किसी शफाखाने में

    ऐसे ही दुनिया के इस तालाब में

    लेटी हूँ मैं बिना साँस लिए यूँ ही

    मेरे नीचे यह दरिया धीरे-धीरे

    ज़िंदगी की तरह उल्टा-सीधा

    बहता जा रहा

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीरबहूटियाँ (पृष्ठ 47)
    • रचनाकार : पद्मा सचदेव
    • प्रकाशन : साहित्य भंडार
    • संस्करण : 2018

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