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नश्वर चीज़ों को ही अमरता का वरदान है

nashwar chizon ko hi amarta ka wardan hai

नीलोत्पल

नीलोत्पल

नश्वर चीज़ों को ही अमरता का वरदान है

नीलोत्पल

और अधिकनीलोत्पल

     

    एक

    नश्वर चीज़ों को ही अमरता का वरदान है

    वे बार-बार जन्म लेती हैं
    जैसे चाक़ू पीलेपन को काटता है 
    और रंग झरता नहीं

    पेड़ और समुद्र ख़ाली होते हैं
    किनारों पर पत्तों का ढेर जुगाली करता है स्मृतियों की 

    प्रेम अनेकानेक जन्म लेता है
    शब्द, मृत्युओं से अधिक ख़ामोश हैं  

    जो अपना युद्ध हारकर लौटे हैं
    उनके थके पाँव टिके हैं तनी दीवारों से 

    जीवन को कोई वरदान नहीं 
    रेतघड़ियाँ ख़ामोश आवाज़ में चलती हैं

    उनकी टिक-टिक वही सुनते हैं
    जिन्होंने अपने कान मृत्यु से सटाए
    फूले दरवाज़े अकस्मात कंपन है हवा-पानी का 
    आख़िरी समय चीज़ों की पवित्रता भंग होती है 

    सिर्फ़ वे ही जो बाहर निकल गए हैं
    अपनी स्मृतियों से 
    जिनके खोने की कौंध 
    खोने से ज़्यादा होने की ख़ामोशी में है 

    दो

    छूटा तीर एक विफल सच से बड़ा नहीं
    धागे वैसे ही रहते हैं जैसे टाँकते वक़्त 
    नॉयलान के कपड़े की ज़िरह खुल जाती है 
    और हवा में रह जाती है एक सनसनाती आवाज़

    सच अमर हो सकता है
    लेकिन उधेड़बुन में टाँके हम ही लगाते हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीलोत्पल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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