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नंदिनी के लिए

nandini ke liye

प्रियंकर पालीवाल

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    नंदिनी

    मेरी बहन

    कहती है

    मैं लिखूँ उस पर एक कविता

    उसे कैसे समझाऊँ कि

    कविता लिखने से

    कहीं अधिक मुश्किल है

    कविता पर लिखना

    यानी कितना कठिन है

    शब्द में भाषा में

    व्यक्तित्व का वैसे का वैसा दिखना

    वह मानेगी ही नहीं

    यह सत्य

    कि कविता को जीना

    उसके द्वारा संभव है

    पर जीवन की लय को

    काग़ज़ पर उतारना

    मेरे लिए असंभव है

    मैं उसे कैसे बतलाऊँ

    ये छोटे-छोटे सच

    कि उसकी मुस्कराहट को

    कविता में अभिव्यक्त

    नहीं किया जा सकता

    जैसे दीपक लिख देने मात्र से

    प्रकाश का अहसास

    नहीं किया जा सकता

    उसे कैसे विश्वास दिलाऊँ

    कि जब मैं लिखता हूँ

    रागात्मक संबंध पर

    आपसी विश्वास के अनुबंध पर

    या लिखता हूँ

    स्नेह पर सुगंध पर

    तो प्राणशक्ति वही होती है

    अब जबकि

    तटों के अतिक्रमण को

    उद्धत है कविता की नदी

    शील और मर्यादा की

    इस भावी वाहिका को

    कैसे समझाया जाए कि

    खंडित लय वाली कविताएँ

    नहीं हो सकतीं उसका प्रतीक

    प्रतिध्वनित नहीं हो सकता

    उनकी अंतर्वस्तु से

    उसके जीवन का

    वह सहज संगीत

    मैं कैसे कहूँ

    इस नन्हीं लड़की से

    कि वह

    कविता से ज़्यादा बड़ी है

    शब्दों की समूची चतुराई

    उसके आगे

    हाथ बाँधे खड़ी है

    अब जबकि

    मैं हार चुका हूँ

    आप ही विश्वास दिलाइए

    मेरे पास उसकी निश्छलता को

    प्रतिबिंबित करने वाले

    पारदर्शी शब्द नहीं हैं

    इतने चटख

    शब्द भी नहीं हैं जो

    उसके सतरंगे सपनों को

    व्यापक फलक दें

    ही हैं इतने तरल शब्द

    कि उसकी भावनाओं की

    सच्ची झलक दें

    नंदिनी

    मेरी छोटी बहन

    शुद्ध संभावना है

    मुझे नहीं पता

    संभावनाओं का क़ाफ़िला

    भविष्य की अबूझ यात्रा पर

    किस रास्ते से जाता है

    तो अब

    शब्द की तीनों शक्तियों को

    साक्षी मानकर

    मुझे स्वीकार कर ही लेना चाहिए

    कि संभावनाओं पर लिखना

    मुझे नहीं आता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दृष्टि-छाया प्रदेश का कवि (पृष्ठ 17)
    • रचनाकार : प्रियंकर पालीवाल
    • प्रकाशन : प्रतिश्रुति प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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