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नक्श तेरे दीदार के

naksh tere didar ke

अनुवाद : रामसिंह चाहल

बलवीर परवाना

बलवीर परवाना

नक्श तेरे दीदार के

बलवीर परवाना

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    मैंने बहुत कविताएँ लिखी हैं

    तेरे लिए

    जानता हूँ यह भी...कि

    उन्हें कभी पढ़ना।

    मगर फिर भी सकून देता है

    यूँ ही करना।

    तुझे इस तरह, उस तरह

    याद करना

    बड़े-बड़े टीलों से

    क़दम मिटते चले जाते हैं।

    हर झखड़ सृजन करता है

    नए रास्ते—नए क्षितिज

    मगर—

    दिल में कहीं कुछ इस तरह

    रुक कर रह जाता है

    कि नहीं मिटता फिर

    गुज़र जाएँ कितने भी तूफां

    कुछ पल—कुछ यादें

    और क्षितिज से पार तक फैला हुआ

    इतना लंबा सूनापन

    धुंधलका

    पता नहीं क्यों फिर भी

    सृजित हो जाते हैं कुछ नक्श

    नक्श तेरे दीदार के...

    स्रोत :
    • पुस्तक : ओ पंखुरी (पृष्ठ 69)
    • संपादक : रामसिंह चाहल
    • रचनाकार : बलवीर परवाना
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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