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नए तरह से लैस होकर आ गई है नई सदी

nae tarah se lais hokar aa gai hai nai sadi

शाश्वत

शाश्वत

नए तरह से लैस होकर आ गई है नई सदी

शाश्वत

और अधिकशाश्वत

    जो दिख नहीं रही मनिहारिन,

    उसके चूड़ियों का बाज़ार

    बेड़ियों के भेंट चढ़ गया है।

    मोतियों की दुकान से

    सीपियों ने रार ठान लिया है

    नई तरह की लड़ाई लेकर आई है नई सदी।

    टिकुली साटती-दोपहर काटती

    सारी औरतें

    शिव चर्चाओं में गूँथ दी गई हैं।

    शिव के गीतों में,

    अब छपरा-सिवान के सज्जन का ज़िक्र भी होने लगा है

    नई तरह की आस्था भी लेकर गई है नई सदी।

    खेत, भूरे होकर अलसा गए हैं

    हवा के सहारे ग़ोते लगाते गेहूँ

    डर कर चीख़ देते हैं सरेआम।

    किसानी के नाम चढ़े चैत में खेत नहीं,

    समय काट रही बनिहारन।

    'आग लागो-बढ़नी बहारो, हेतना घाम'

    बोलने वाली गाँव भर की ठेकेदारन

    नेपाल से आँख बनवा कर लौटी तो ज़रूर

    लेकिन खेत में नहीं डाले पाँव उसने

    मोतियाबिंद ने आँख का पानी जगा दिया।

    कि नई बीमारी भी लेकर गई नई सदी।

    चहक कर पेड़ के गोदी में झूल जाने वाले बच्चे,

    समय से पहले बड़े हो गए ऐसा भी नहीं है

    जीवन जीने को साधने के लिए

    सूरत से दमन तक बिछ गए हैं ज़रूर।

    भय यही है कि

    रोटी-कपड़ा-मकान देने के लिए

    शराब में खप कर अगर बचेंगे

    तो अंत में धर्म के नाम पर चीख़ देंगे सरेआम

    जैसे पके हुए गेहूँ हों।

    और चीख़ तो एक जैसी होती है

    क्या गेहूँ-क्या इंसान

    भले ही नई तरह से लैस होकर आई है नई सदी,

    नई तरह की चीख़ लेकर नहीं सकी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शाश्वत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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