नदी के सीने में असंख्य दुख बहते हैं
नदिया अपने दुखों को जीती
एक दिन गहरे समुद्र को
सौंप आती हैं
अपने दुखों की असंख्य कहानियाँ
जो समुद्र के सीने पर दहाड़े मारती रहती हैं
पर अक्सर लोगों की आँखों से ओझल रह जाती है
नदी हमारे लिए पवित्र चीज़ है
और नदी की पवित्रता पर संदेह करना धर्म-विरुद्ध
इसलिए शासकों, दलालों एवं पुरोहितों के लिए
यह सबसे फ़ायदे की चीज़ है
एक शासक के घोषणापत्रों में
वर्षों से हैरान ताकती रही नदी
एक शासक इसे बचाने की शपथ लेकर
इसकी बोली लगाता
एक शासक इसे डिब्बे में भर घर-घर पहुँचाता
एक शासक इसके सीने पर बाँध बनाकर
विकास का नायक कहलाता है
एक पुरोहित इसे लोटे में भरता
इसकी पवित्रता के मंत्र बुदबुदाता
दक्षिणा के पैसे अपनी बंडी की जेब में डालता है
और नदी जेब के भीतर पहुँच जाती है
जी हाँ! जेब के भीतर
यह हमारे समय का भयावह सच है
कि नदियाँ ज़मीन से ज़्यादा
आजकल जेबों, नक़्शों और फाइलों में बहती
लगातार दम तोड़ रही हैं
एक कवि इसकी दशा पर ज़ार-ज़ार रोता है
गाता है नदी के शोकगीत
कुछ लोग अब भी हैरान-परेशान हैं
जिनकी आँखों में डरावने सपने की तरह
आती है नदी
एक महात्मा इसे बचाने के लिए
अपने प्राण देता है
कुछ लोग
नदियों के लिए लड़ रहे हैं
आर-पार की लड़ाई
और देखिए न
आपकी सुविधा के लिए नाव है
पाँच रुपए का टिकट लेकर
नदी के दुखों को बिना छुए आप
हर रोज़ आराम से पार कर सकते हैं नदी।
- रचनाकार : आनंद गुप्ता
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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