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नाभि

nabhi

प्रियंका दुबे

और अधिकप्रियंका दुबे

    जब तुमसे प्रेम किया,

    तो दिल से भी पहले

    नाभि से ही जुड़कर किया था।

    जब मित्र माना, तो भी नाभि से माना।

    जैसे मेरा दिल नाभि में उतर आया हो?

    जब मुक्ति की बारी आई

    तब भी,

    दिल से पहले

    नाभि से ही मुक्त करना पड़ रहा है तुमको।

    मुक्ति के लिए जब नाभि खोलती हूँ अपनी

    तो ख़ून बहता है

    बहता ही रहता है।

    जैसे मैं तुम्हारी मुक्ति को नहीं,

    बल्कि संतान को जन्म दे रही हूँ?

    फिर इस असहनीय पीड़ा में तड़पते हुए सोचती हूँ

    कि क्या गहरे बिछोह की अर्जना

    संतान की अर्जना से कम है?

    और यह कि

    प्रेम से जन्मी संतानों वाली इस सृष्टि में

    प्रेम की अनुपस्थिति से जन्मने वाली संतानों की

    क्या जगह है?

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रियंका दुबे
    • प्रकाशन : समकालीन जनमत

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