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जीवन रहस्य

jivan rahasya

सौम्या सुमन

सौम्या सुमन

जीवन रहस्य

सौम्या सुमन

और अधिकसौम्या सुमन

    मेरी आत्मा

    क़ैद है एक देह में

    देह...

    जिसके अपने होने का

    दावा नहीं कर सकती मैं

    पर

    प्रेम करती है आत्मा

    इस क़ैद से

    अनमनी है आजकल

    बेचैन, बिफरती है

    बेबात चीख़ती-मचलती

    पगली है

    नहीं जानती

    अपने होने का प्रयोजन

    ख़ुद की तलाश

    अँधेरे के महासमुद्र में

    कब था इतना आसान!

    अथाह सिंधु में

    लगाती है गोते

    उन बंद सीपियों की तलाश में

    छुपा होता है जिनमें

    जीवन-रहस्य

    आकाशवाणी हुई

    कोई महाबोधि नहीं अब यहाँ।

    ज़ुल्म और ज़्यादती में

    प्रेम और विरह में

    अतृप्तियों में,

    जल-समाधि लिए खंडहरों में

    भटको

    सर पटको बियाबानों में

    कि तुम बुद्ध नहीं

    ऐसे में

    मेरी देह छूटती रही रेत पर

    निस्पंद, मृतप्राय!

    बेचैन मन-प्राण

    लहरों के फ़ेनिल आवेगों में

    देखो संघर्ष!

    अनवरत जारी है

    उठने और गिरने का खेल

    अधमुँदी पलकों पर

    कई कई सवाल लिए

    औंधे मुँह पड़ी

    इस रेत में धँसना नहीं चाहती

    तुम लाते

    अनगिनत सीपियाँ

    मुट्ठियों में भर-भर

    पाँव में प्रवाल लिए

    विजई मुस्कान लिए

    पर आह!

    मेरी नियति...

    सीपियों को खोलने से पूर्व ही

    फिसल जाता है सर्वस्व

    उसी अथाह में

    उम्र बीतती जाती है

    मेरी आत्मा

    अब आकाश छूती है

    रेत में धँसती चली जाती है

    यह देह

    अदृश्य होती आकृतियों में

    जड़ता में,विराम में

    पाती हूँ हर दिन

    थोड़ा-थोड़ा तुम्हें

    मेरे विराट

    जीवन-रहस्य

    अनसुलझा

    अर्थहीन प्रतीकों में...

    स्रोत :
    • रचनाकार : सौम्या सुमन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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