मुझको मिलते हैं अदीब और कलाकार बहुत
mujhko milte hain adib aur kalakar bahut
शमशेर बहादुर सिंह
Shamsher Bahadur Singh
मुझको मिलते हैं अदीब और कलाकार बहुत
mujhko milte hain adib aur kalakar bahut
Shamsher Bahadur Singh
शमशेर बहादुर सिंह
और अधिकशमशेर बहादुर सिंह
मुझको मिलते हैं अदीब और कलाकार बहुत
लेकिन इंसान के दर्शन हैं मुहाल।
दर्द की एक तड़प—
हल्के-से दर्द की एक तड़प,
सच्ची तड़प
मैंने अगलों के यहाँ देखी है;—
या तो वह आज है ख़ामोश तबस्सुम में ज़लील
या वो है कफ़-आलूद;
या वो दहशत का पता देती है;
या हिरासाँ है;
या फिर इस दौर के ख़ाको-ख़ूँ में
गुमगश्ता है।
- पुस्तक : टूटी हुई, बिखरी हुई (पृष्ठ 89)
- संपादक : अशोक वाजपेयी
- रचनाकार : शमशेर बहादुर सिंह
- प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
- संस्करण : 2004
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