मुझे आई.डी. कार्ड दिलाओ
mujhe aiDi card dilao
शहर सुनसान है
हर तरफ़ पसरा सन्नाटा
शहर के मुख्य चौराहे पर घायल पड़ा व्यक्ति
दर्द से चिल्ला उठा
मेरी मदद करो...
मुझे पहचानो
प्लीज़ हेल्प मी
क्यों कोई नहीं सुन रहा मेरी
अरे मैं हूँ धरती का स्वर्ग
डोगरों का शौर्य
और लद्दाख का शांति स्वरूप
लेकिन अब मुझे कोई नहीं पहचान रहा
हर कोई मेरे ही घर में
मेरा आई.डी. कार्ड माँग रहा है।
घायल हाथों से माथे का ख़ून पोंछते हुए फिर चिल्लाया
अरे कोई तो युवा उमर को आवाज़ दो
क्या उम्र नहीं सुन रहे तो
फ़ारूक, आज़ाद, महबूबा, गिलानी, मीरवायज़,
कर्ण सिंह, खजूरिया, रिगजिन, दुबे...
अनगिनत नाम हैं
किसी को तो बुलाओ
नहीं आते तो उन तक संदेश पहुँचाओ
कहो कि मेहरबानी कर
मेरे आई.डी. कार्ड का प्रबंध करें
मुझ तक पहुँचाएँ मेरी पहचान
मैं बेबस हूँ
मैं घायल हूँ
दिल्ली है कि मेरा विश्वास नहीं करती
इस्लामाबाद सबूत माँगता है
यू.एन.ओ. मुझे पहचानने की बजाय
अपना सिर खुजलाता है
तभी चौक का सन्नाटा टूटा
हाथ में पत्थर उठाए युवाओं की टोली
शोर करती शांति को चीरते चिल्लाई
कौन है जो पहचान की बात कर रहा है
मारो बचने न पाए
युवाओं के पीछे पीछे खाकी वर्दी वाले भी लपके
तभी किलाश्न्कोव की गोली चली
घायल के सीने को चीरते हुए निकल गई
घरों में दुबकी शहर की भीड़
बाहर निकल चौराहे पर जमा हुई
युवाओं के साथ बंदूक़ उठाए सिपाही भी बोला
कोई पहचानता है इसको
अगर नहीं तो इसका आई.डी. कार्ड देखो
देखो कौन है यह
नहीं... इसके पास तो आई.डी. कार्ड है ही नहीं
पेंट छोडो क़मीज़ की जेब देखो
नहीं है
पैंट की अंदर की जेब
अरे! कुछ भी नहीं
तो यह बिना आई.डी. कार्ड के
यहाँ क्या कर रहा था
इसको तो मरना ही था
बिना आई.डी. कार्ड के धरती के
इस टुकड़े पर कोई किसी को नहीं पहचानता
न दिल्ली
न इस्लामाबाद
न यूएनओ
न मैं
न तुम।
- रचनाकार : कुमार कृष्ण शर्मा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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