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मृत्यु के समीप पहुँचा व्यक्ति

mrityu ke samip pahuncha vyakti

लक्ष्मीकांत मुकुल

लक्ष्मीकांत मुकुल

मृत्यु के समीप पहुँचा व्यक्ति

लक्ष्मीकांत मुकुल

और अधिकलक्ष्मीकांत मुकुल

    मृत्यु शैया पर पड़ा व्यक्ति

    देखता है अपने आस-पास के खड़े बैठे लोगों को

    जो उसकी मृत्यु का कर रहे होते हैं इंतज़ार 

    वह भी लेटे-लेटे इंतज़ार करता है मृत्यु का

    चेतन-अवचेतन अवस्था के

    विभ्रम में देखता है आकाश में उड़ते जहाज़ 

    सड़क पर उसकी ओर आती 

    काली गाड़ियों की कतार 

    कभी सुनता है हाथों में डोर थामे

    यमदूत की पदचाप दहकते खेतों से आते डंठलों के चिटकने

    कभी, बर्फ़बारी से अपनी देह के

    जोड़ों के टूटने की आवाज़ 

    मृत्यु सैया के मुहाने पर खड़ा आदमी

    आख़िरी दम तक कोशिश करता है कि वह  

    बना रहे जीवित व्यक्तियों की दुनिया में 

    वह पूरा कर लेना चाहता है समस्त अपूर्ण इच्छाएँ

    अपनी कमजोरियों में भरसक करना चाहता है

    सुधार वह फैलाए रखना चाहता है 

    आकाँक्षाओं के सतरंगी छाते 

    मृत्यु के समीप पहुँचा व्यक्ति

    याद करता है अपने बचपन को 

    वह भैंस की चरवाही करते हुए 

    सीखना चाहता था बाँसुरी वादन

    ताकि उसे मिल सके कोई मनचाही राधा

    कॉलेज के दिनों में एक सहपाठीन से 

    जब हुआ था उसका नैना चार

    जिसे बना नहीं सका कभी जीवन संगिनी 

    कैरियर, धन, धूर्तता की लालच की हदों को पार करता

    भूलता गया गाँव, परिवार और दुनियावी रिश्ते 

    मृत्यु की ओर बढ़ता वह 

    बढ़ाना चाहता है दोनों हाथ जीने की उम्मीदों में 

    सहसा उसके पाँव फिसल जाते 

    मृत्यु की असीम दलदल में 

    जिसे नज़रअंदाज़ करता रहा था वह अब तक।

    स्रोत :
    • रचनाकार : लक्ष्मीकांत मुकुल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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