मृत घोड़ों से बना परिदृश्य, 1939
mrit ghoDon se bana paridrishya, 1939
जॉन गुज़लॉवस्की
John Guzlowski

मृत घोड़ों से बना परिदृश्य, 1939
mrit ghoDon se bana paridrishya, 1939
John Guzlowski
जॉन गुज़लॉवस्की
और अधिकजॉन गुज़लॉवस्की
(1)
भारी और कठोर हथौड़े की तरह
आया है युद्ध
धरती को समतल करता
और नेस्तनाबूद करता हुआ कोमलता को—
घोड़े और बच्चे, पुष्प और आशा,
प्रेम और खेतों की सुगंध,
छोटी नदियों की ठंडक,
पेड़ों की पत्तियों का खुलना
मार्च अंत और अप्रैल आरंभ में
घोड़ों के दीख पड़ने से पहले
आ जाती है उनकी देहगंध।
(2)
घोड़े कराह रहे हैं,
उनके सिर ज़मीन पर पड़े हैं
उनके शरीर छटपटा रहे हैं
वे छटपटा रहे हैं उन मनुष्यों की तरह
जो कोशिश करते हैं
आख़िरी साँस के लिए अपना सर उठाने की
कोशिश किसी तरह ठंडी हवा भर लेने की
अपने क्षत-विक्षत, जलते फेफड़ों में
इन घोड़ों और इनके सवारों के लिए
यह संसार ईश्वर का बनाया संसार नहीं रह गया है
फिर भी ये हिम्मत करते हैं सिर उठाने की
ताकि अपने घायल फेफड़ों तक
पहुँचा सकें तनिक-सी हवा।
(3)
इस घोड़े को देखो
एक बम ने इसका सिर
धड़ से अलग कर दिया है
इतना ख़ून बह रहा है
कि संसार के बारे में
तुम इससे सीख सकते हो
संसार में मौजूद समस्त किताबों से अधिक
इस घोड़े का सिर
तुम्हारे लिए दुनिया को पुनर्परिभाषित करेगा—
यह ईश्वर तक को एक पाठ पढ़ाएगा
उन पत्थरों के बारे में
जो हमारे हृदय में उठ रहे हैं—
ठंडे और कठोर पत्थर।
- रचनाकार : जॉन गुज़लॉव्स्की
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए अनुवादक द्वारा चयनित
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