काल्हि हमर डेरापर
आबि ओ
अपन नवका विदेशी
पिस्तौल देखा गेलाह।
गना गेलाह एक-एक कऽ
ओकर विशेषता
मारक क्षमता।
छोट-छीन टुनमुनियाँ
कारी चमकैत पिस्तौल
देखबामे लगैत छल
हिलसगर।
ओ गद्गद् भऽ
सुनबैत रहलाह
पिस्तौल प्राप्तिक खिस्सा।
मैथिलक बदलैत
प्रकृति, आवश्यकता—
आर, विकासक संग
अस्त्रक अनिवार्यतापर
दैत रहलाह भाषण।
—ई व्यक्ति जे काल्हि
हमरा पिस्तौल देखा गेलाह
कहियो कऽ अबैत रहैत छथि।
आ अयाची मिसरक विरुद्ध
तर्क करैत
कहियो के अपन गाछक
एक झोरा लताम
अपन बाड़ीक एक हत्था केरा
अपन पोखरिक
एक फड़ी माछ
हमरा लेल अनैत रहैत छथि।
किछु कहलापर
लगै छथि देबऽ उपदेश
बड़का भैया संग
स्कूलमे छलाह पढ़ने
तैँ अपने मोने हमरा
अपन अनुज मानै छथि।
अपने मोने सुनबैत
रहैत छथि
के, कोना कमाइए तकर गप्प!
आ अग्रज तुल्य
अधिकारक संग
खराब होइत दुनियाँ
दिल्लीसँ पटना धरिक
चलैत व्यापार
दुख कटैत परिवार आ
सामाजिक सरोकारक
उदाहरण दऽ
किछु-किछु चलबऽ लेल
उकसबैत रहैत छथि।
अपने मोछ नहि
रखने छथि
तैँ हमर मोछक
रहैत छनि बड़ चिन्ता।
ओना तँ कहैत रहैत छथि
जे कटा लिअऽ मोछ
अनेरे किएक छी रखने,
पैघ लोक कतहु मोछ राखय?
देखा दिअऽ कोनो पैघलोककेँ
जे मोछ रखने हो।
ओ जमाना चलि गेलै
जहिया मोछ पुरुषत्वक
चेन्ह रहय
आब तँ पुरुषत्वे
पैघ लोक हेबाक
मार्गमे अछि
बड़का बाधक।
तैँ कहैत रहैत छथि
हमरा अनुज बुझनिहार
पैघ लोक हेबाक अछि तँ
मोछ कटा लिअऽ
अथवा एनाकऽ
काज करू, कमाउ
जे मोछमे नहि लागय।
- पुस्तक : चक्रव्यूह पसरैत (पृष्ठ 79)
- रचनाकार : अशोक
- प्रकाशन : नवारम्भ
- संस्करण : 2023
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