Font by Mehr Nastaliq Web

यह पीपल का पेड़

ye pipal ka peD

अनुवाद : देशबंधु डोगरा ‘नूतन’

तारा स्मैलपुरी

तारा स्मैलपुरी

यह पीपल का पेड़

तारा स्मैलपुरी

और अधिकतारा स्मैलपुरी

    पीपल का पेड़ चबूतरे का

    बूढ़ा-बूढ़ा वृक्ष पुराना

    जिसकी जड़-मूल पाताल लोक तक

    दूर-दूर तक डाल हैं फैले

    किंतु, इसका पत्ता-पत्ता

    पृथक-पृथक है खट-खट करता

    दक्षिण दिशा से आए आँधी

    दक्षिण दिशा के पत्ते टूटें

    उत्तर दिशा से झोंका आए

    उत्तर दिशा के पत्ते टूटें

    यही दशा है पूरब-पश्चिम

    आख़िर शरद ऋतु जाती,

    शीत पीली धूप है जिसकी

    हवा चले बर्फ़ानी ठंडी

    पतझड़ आए दौड़-दौड़कर

    पीले पड़ गए पत्ते इसके

    धीरे-धीरे बारी-बारी

    पत्ता-पत्ता

    झरता जाए।

    रुंड-मुंड पीपल पछताए

    टुंड-मुंड हो हाल पूछते

    अरे हुआ क्या?

    इस कारण पीपल पछताए

    चिंता चिता-सा धधक रहा है

    भीतर-भीतर कोख है जलती

    बनता जाता खोखला

    फिर आती आवाज़ बेचारी

    बड़ी दुखियारी

    यह पीपल का पेड़ हमारा, डुग्गर प्यारा,

    दूर-दूर तक इसकी बाँहें

    हम हैं डोगरे इसके पत्ते

    पृथक्-पृथक् हैं खट-खट करते

    इक दूजे के पाँव बाँधकर

    आपस में ही खींच रहे हैं

    भाई-भाई का बन गया दुश्मन

    और देखता घूर-घूरकर

    पीछे बचा रहा कुछ भी

    नज़रों में भी पड़ी दरारें,

    हो गई दूर बन गई खाड़ी

    बीच दिलों के

    किंतु, बाहिर लोक दिखावा

    'शेर तो रहता है एकाकी'

    ले डूबी यह बात पुरानी

    नयनों में भर खारा पानी

    आहें भरती रोदन करती

    अब डुग्गर की साख पुरानी

    जीना मरना एक था अपना

    सबकी साँझी चाल-ढाल थी

    जहाँ एक का गिरे पसीना

    वहाँ दूसरा ख़ून गिराए

    इसीलिए तो यूरोप भर में

    मची हुई थी धाक हमारी

    पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण

    कभी चमकती

    कभी लपकती

    डुग्गर की तलवार हमारी

    दिल में थे उत्साह-हौसले

    कोमल सूक्ष्म कला हमारी

    चित्रकला के होते चर्चे

    किंतु...

    पूर्वजों की शान के ऊपर

    कब तक रहेगा गौरव अपना?

    आज के युग में वही जीते हैं

    जो चलते हैं मिलकर ऐसे

    घने बादल हों ज्यों सावन के

    जो रहते हैं मिलकर ऐसे

    ज्यों सरवर में जल की बूँदें

    तभी पुरानी साख बचेगी

    तभी जिएगा गौरव अपना

    आज समय की यह ललकार है

    ख़बरदार! तुम होश सँभालो

    वरना आँधी के झटके से

    बियावान में मिट जाओगे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 116)
    • संपादक : ओम गोस्वामी
    • रचनाकार : तारा स्मैलपुरी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए