मिठाई बनाने वाले
mithai banane wale
जब दुनिया बनी
तो सबसे पहले बने मिठाई बनाने वाले
हाथों में भर-भर के चीनी की परत
परत भी ऐसी वैसी नहीं
एकदम गूलर का फूल छुआ के
जितना ख़र्च हो, उतना बढ़े
उँगली के पोरों में घी का कनस्तर,
कनस्तर भी वही गूलर के फूलों वाला
आँखों में परख,
परख भी एकदम पाग चिह्न लेने वाली
इतने सबके बाद
बोली तो मीठी होनी ही थी
सो भी है।
लेकिन कलेजा?
मठूस हलवाई कहीं का,
बचपन में ही काले रसगुल्ले की क़ीमत
आसमान पर रखे था
सात रुपया पीस
आते जाते स्कूल,
मन मार कर साइकिल चलाते लड़कों में,
नौकरी की पहली ललक तुम्हारे रसगुल्ले के रेट ने ही तो लगाई
सात रुपया पीस
रसगुल्ला है कि कलेजे का टुकड़ा तुम्हारे?
और समोसा,
वह भी हर साल एक रुपए महँगा
बहाना तो देखो,
महँगाई बढ़ रही
लौंगलत्ता तो ऐसे,
जैसे सोखा का लौंग डाले हो ओझइती करके
क्या सोचे हो?
कि शो-केश के उस पार की सारी मिठाई तुम्हारी बपौती हैं?
सो तो हैं।
लेकिन,
एक दिन जब होंगे लायक़
तो ज़रूर देह में घुल चुकी होगी चीनी की परत।
ज़िंदगी उबले हुए आलू को सोख रही होगी।
और ज़बान में लड़खड़ाहट भी होगी।
फिर भी,
किसी दिन आकर
तुम्हारी दुकान की सारी मिठाई खा जाएँगे
फिर देह में घुल चुकी शर्करा के पार जाकर
भगवान से आश्वासन लेंगे
कि अगली बार
लड़की बनाना
जिसके पिता और पति दोनों की
अपनी मिठाई की दुकान हो।
- रचनाकार : शाश्वत
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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