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मिस्त्री

mistri

राकेश रंजन

राकेश रंजन

मिस्त्री

राकेश रंजन

और अधिकराकेश रंजन

    मेरा कोई यंत्र ख़राब हो जाता है

    और मैं परेशान हो जाता हूँ

    जाता हूँ क़िस्मत पर रोता मिस्त्री के पास

    इससे पहले मैं ठीक से खा नहीं पाता, पी नहीं पाता

    बात-बेबात झड़कता हूँ, बच्चों को झिड़कता हूँ

    बीवी से झगड़ता हूँ, लोगों से फुलाए रहता हूँ मुँह

    इससे पहले मैं ठीक से कुछ कह नहीं पाता

    सह नहीं पाता, रह नहीं पाता

    विकल अकबकाहट में कहता हूँ मिस्त्री से ये हुआ वो हुआ

    जैसे आसमान टूट पड़ा हो मुझ पर

    जैसे सूख गई हो नदी, जैसे जल गया हो जंगल

    आनेवाला हो प्रलय, विनष्ट होनेवाली हो सृष्टि

    मैं एक साँस में दिखा देता हूँ उसे अपनी मुसीबत का पहाड़

    पर वह मुझ पर ध्यान नहीं देता, मेरी बात नहीं सुनता

    सिर झुकाए रहता है लीन अपने काम में

    बनाता रहता है किसी और की बिगड़ी

    माथा खुजाता, खैनी चुनियाता, उठता-बैठता, ठोंकता-पीटता

    खोलता-कसता, उठाता-रखता औज़ार

    फिर देखता है मुझे

    जैसे डॉक्टर देखता है उस मरीज़ को

    जो खाज को कहता हो कोढ़, फुंसी को भगंदर

    वह मेरा यंत्र हाथ में लेता है और बना देता है

    या कहता है बन जाएगा, कोई ख़ास बात नहीं

    मैं राहत की लंबी साँस लेता हूँ

    और देता हूँ उसे लाख-लाख धन्यवाद

    कभी इच्छा होती है, अपना रवैया उसके पास ले जाऊँ

    जो होता जा रहा दिनोदिन ख़राब

    अपना दिमाग़, अपने रिश्ते ले जाऊँ

    अपनी कविता ले जाऊँ और कहूँ, देखो ज़रा बिगड़ गई है

    जी करता है पूछूँ

    क्या तुम कर सकते हो मरम्मत इस मुल्क की?

    स्रोत :
    • रचनाकार : राकेश रंजन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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