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दुख यदि जाना मेंरा उसने...

dukh yadi jana menra usne. . .

ज्ञानराज माणिकप्रभु

ज्ञानराज माणिकप्रभु

दुख यदि जाना मेंरा उसने...

ज्ञानराज माणिकप्रभु

दुख यदि जाना मेंरा उसने सुखघनता बाधित होती।

औ' यदि जाना नहीं दुःख तो भगवत्ता बाधित होती॥

घनीभूत आनंदरूप को क्या दुख का कुछ अनुभव है?

अनुभव बिन क्या उसके द्वारा दुःखनिवारण संभव है?

अनुभव बिन वह दयालुत्व निज प्रगट नहीं कर सकता है।

अनुभव है दुख का कह दे तो चित्सुखता बाधित होती॥

रवि को तम का अनुभव है यह कहना तर्क विसंगत है।

किए बिना वह संगत तम की क्या जाने क्या रंगत है।

रवि का तम से तम का रवि से वैर नहीं यदि मानोगे।

रवि की प्रज्ज्वल तेजोमयता भासकता बाधित होती॥

वेद उसे सर्वज्ञ कह रहा जिसे दुःख का ज्ञान नहीं।

सर्वेश्वर अंतर्यामी को दुख का किंचित् भान नहीं।

अंतर्यामी अंतर्मन के दुख से यदि अनभिज्ञ रहे।

उसकी सर्वांतरता एवं संप्रभुता बाधित होती।

तर्क सुने प्रभु ने औ' बोले 'ज्ञान' तुझे कुछ ज्ञान नहीं।

दर्पण में मुख देख रहा तू इसका तुझको भान नहीं।

दर्पण यदि मैला हो तो क्या मुख मैला हो जाएगा?

मैले दर्पण से क्या मुख की सुंदरता बाधित होती?

स्रोत :
  • रचनाकार : ज्ञानराज माणिकप्रभु
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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