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मिडिल क्लास

middle class

जावेद आलम ख़ान

जावेद आलम ख़ान

मिडिल क्लास

जावेद आलम ख़ान

और अधिकजावेद आलम ख़ान

    जीवन के दोराहे पर

    जब प्रेम और विवाह में किसी एक को चुनना था

    हम छह बजाती घड़ी की सुइयों की तरह पीठ मिलाए खड़े थे

    और अपना अपना सूरज देख रहे थे

    अकाल के दिनों में

    जब परिवार का सहारा बनना था

    हम अँगीठी से धुएँ की तरह उठे

    रोटी की आस जगाकर

    आँखों में और आँसू देकर आकाश में भाग गए

    अपने छिले-कटे पुरुषार्थ को

    एक झूठी आश्वस्ति के विज्ञापन से ढके

    कि परिवार को रोटी की आस

    एक साथ चूल्हे के पास

    बैठा रहने का संबल हमने ही दिया है

    हम मध्यमार्गी लोग थे

    हैसियत में मिडिल क्लास

    हम अर्थ में धर्म में विचार में और क़द में मँझोले थे

    हमारी गर्दन कभी ऊपर देखती थी कभी नीचे

    सर्वाइकल की पीड़ा से त्रस्त संशयग्रस्त लोग थे

    तक़दीर ने जब भी हमें हुक्म दिया

    कि हम अपने जीवन का सिंहावलोकन करें

    तो हसबे-मामूल हर बार हमारी हालत कुछ यूँ हुई

    जैसे गुमशुदा पति के मिल जाने की प्रार्थना करती स्त्री

    समाधि से जागकर

    लावारिस लाश की शिनाख़्त के लिए बुलाई गई हो

    स्रोत :
    • रचनाकार : जावेद आलम ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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