Font by Mehr Nastaliq Web

मेरे बचपन की जेल

mere bachpan ki jel

विवेक चतुर्वेदी

विवेक चतुर्वेदी

मेरे बचपन की जेल

विवेक चतुर्वेदी

और अधिकविवेक चतुर्वेदी

    मेरा बचपन एक जेल में बीता

    जिसके दरवाज़े से बहनें मुझे

    रोज़ ढकेल देती थीं भीतर

    और निष्ठुर और कठोर ‘ना’ लिए

    खड़े रहते थे पिता

    हम सबको भीतर कर

    अलस्सुबह बंद होते

    जेल के उस हाथी दरवाज़े की

    किर्रर... आज तक मेरे भीतर गूँजती है

    क्या कुछ नहीं बंद और ख़त्म हुआ

    उस दरवाज़े के साथ

    जेल में एक-सी वर्दी पहने

    उनींदी आँखों और थके पैरों वाले

    हम नए पुराने क़ैदी

    एक सफ़े में खड़े किए जाते

    जेलरों का चहेता एक पुराना क़ैदी

    हमसे दुहरवाता था एक फ़रेबी प्रार्थना

    जिसके लफ़्ज़ों के मानी का वहाँ

    किसी को भी यक़ीन था

    फुदकती गौरैयाँ, उगता सूरज

    गाय का नवजात बछड़ा,

    पुराने टायर से बनी

    शानदार गाड़ी, पतंग, गुलाबी नींद,

    घर के आँगन की रेशमी सुबह

    ये सब बस्ते में क़ैद हो जाने से

    उपजी छटपटाहट में

    कैसा गूँगा दुख था

    जिसे मैं... जी भर कर रो भी सका

    मेरे आँसू भीतर उमगे

    वो जहाँ-जहाँ बहे वहाँ

    खारे निशान वाली धारियाँ छिल गईं

    उनका नमक आज तक मेरी चेतना को छरछराता है

    हमें बैरकों में ठूँसा जाता था

    रटाया जाता था कामुक

    और वहशी राजाओं का इतिहास

    डरावना और बेखुर्द विज्ञान, बेबूझ गणित

    अपने काम और हालात से हुए चिड़चिड़े जेलर

    हमारी नर्म खूँटियों पर

    अपना भारी अभिमान टाँगते

    थुलथुल हठी जेलर

    काले धूसर तख़्ते पर हमें

    दिखाए जाते ज्यामितीय आकार

    उन त्रिभुजों के कोने

    हमारी चेतना में धँस जाते

    वो चाहते थे हम बनें

    याद रखने की उम्दा मशीन

    हमारे पाठ में कुछ

    कविताएँ भी थीं कुछ कहानियाँ

    जो उन जेलरों के हाथ

    पड़कर नीरस हो जातीं

    बैरक की अधखुली खिड़की से

    मैं देखा करता

    हवा में गोता लगाते

    डोम कौए

    बैरक के छप्पर में

    आज़ाद फिरते चमगादड़

    रोज़ शाम मैं पैरोल पर छूटता था

    और मोहल्ले की धूल भरी सड़कों पर खेलने में

    भूल जाता था कि मैं क़ैदी हूँ

    पर जब रात गहराती

    सुबह सात बजे की सूली छेदने लगती

    घर की दीवाल में जो पुरानी घड़ी थी

    सुबह सात बजाने के लिए उसकी गति

    इतनी तेज़ क्यों थी

    नारंगी सपनों को रौंदता

    समय का काला घोड़ा क्यों भागता था सरपट

    घड़ी के उन काँटों को सुबह सात बजे तक जाने से रोकने

    अधूरी नींद के ख़्वाब में

    उन पर हाथ की उँगलियों के बल

    मैं लटक जाता था

    तब घड़ी के काँटे हो जाते चाक़ू जैसे संगलाख

    कितनी-कितनी रातें

    कितनी-कितनी बार

    मैं उन काँटों को रोकने लटका

    कितनी-कितनी बार मेरी उँगलियाँ

    कट कर घड़ी के डायल से चिपक गईं

    अब जब कभी मैं चाहता हूँ

    बनाना एक छोटी चिड़िया का चित्र

    लिखना एक मुलायम-सा गीत

    तब मालूम होता है मुझे मेरी उँगलियाँ नहीं हैं

    चील बन अवसर के मुद्दों से

    उपलब्धियों का मांस नोचने

    नाख़ून तो है

    पर वो उँगलियाँ नहीं हैं

    जो किसी का सिर सहलाती हैं

    सितार बजाती हैं

    उस सीलन भरी जेल में

    कुछ पुराने क़ैदी थे

    जो ना मालूम कैसे

    बहुत ख़ुश रहने का हुनर

    सीख चुके थे

    और हमें भी ख़ुश रहने के लिए धमकाए जाने

    वार्डन की तरह मुस्तैद थे

    हम क़ैदियों को नीरस और उबाऊ पाठ

    याद करने की सजाएँ मुक़र्रर थीं

    हमें थी भिन्न, हमें कड़वा बीजगणित था

    अप्रिय तेज़ गंध वाले रसायन थे

    कभी हाथ आने वाली भौतिकी थी

    कभी-कभी सबसे बड़ा

    उस जेल का सबसे बड़ा अधिपति

    जेलर हमसे मिलने आता

    तब हमें बैरकों से

    मैदान में खदेड़ा जाता

    कंकड़ बिछे उस मैदान

    की धूप में हम सफ़े में बैठाए जाते

    बड़ा जेलर हमें सिखाता अच्छा क़ैदी बनने के गुर

    उसकी बात जेल का नाम रौशन

    करने से शुरू होती और ख़त्म

    ये अँधेरी सुरंग जैसे कभी

    ख़त्म होने वाले

    जेल के दुख को काटने कई बार

    मैंने ज़िंदगी को भी काटना चाहा

    पर हम छोटे थे

    हमें नहीं मालूम थे

    ख़ुद को ख़त्म करने के बहुत कामयाब रास्ते

    थर्मामीटर तोड़ पारा गुटकने के

    कभी उस जेल के पिछवाड़े बने

    पुराने कुएँ में छलाँग के

    कभी उस जेल की सबसे ऊँची

    छत से गिर जाने के

    सुने हुए रास्ते थे

    पर हमको घर में

    या उस जेल में

    मरना सिखाया नहीं गया था

    जैसे कि जीना भी नहीं सिखाया गया था

    सो हम मर भी सके

    हाँ... हमको जो रोज़-रोज़

    जेल तक छोड़ते थे वो गाड़ीवान

    ख़ालिस और सच्चे आदमी थे

    बीड़ी पीने वाले

    रिक्शों के ख़ाली पाइप में गुल्लक बना

    दस-बीस पैसे के सिक्के जोड़ने वाले

    हमारे आस-पास तब जो भी लोग थे

    उनमें से यही थे जो हमारा दुख समझते थे

    और उस दुख को कम करने

    कभी-कभी कुल्फ़ी खिलाते थे

    वो ख़ूब ज़िंदादिल लोग थे

    जो बचपन में कभी जेल नहीं गए थे

    ग़रीब और फटेहाल

    गमछे बंडी वाले

    हँसने खाँसने वाले

    चेचक के दाग वाले

    साँवले चेहरे ख़ूब याद हैं

    बरस-दर-बरस बिता

    जब मैं उस जेल से निकला

    तो एक अदृश्य टाई मेरे गले

    में कस गई

    प्लास्टिक की एक नक़ली

    मुस्कुराहट जड़ गई मेरे होंठों पर

    जो कितना भी दुख हो

    पिघलती नहीं थी

    अब मैं एक छँटा हुआ शरीफ़ था

    एक रोबोट

    अब मैं आसानी से चूस सकता था किसी का ख़ून

    चालाकियों की परखनली के रसायन को पढ़ना

    मैं ख़ूब जान चुका था

    यहाँ तक कि वो ख़तरनाक रसायन

    बनाना भी मैं सीख चुका था

    जो जो मैं भगवान के घर से सीखकर आया था

    वो सब भुलाया गया मुझे उस जेल में

    सभी नदियाँ वहाँ सुखाई गईं

    सभी जंगल जलाए गए

    सभी पक्षी चुप कराए गए

    सभी पहाड़ बौने किए गए

    मेरे भीतर जो भी मुलायम था

    वो सब खुरदुरा किया गया

    आज बरसों के बाद

    मैं उस जेल के सामने

    फिर आकर खड़ा हूँ

    देखता हूँ

    जेल की इमारत कुछ और

    रंगीन हो गई है

    जैसे कि कभी ज़हर रंगीन होता है

    मेरी देह एक डायनामाइट हो गई है

    वो बचपन की जेल

    जो मेरी शिराओं तक में दौड़ गई है

    उसको उड़ाना चाहता हूँ

    पर शीशे की तरह पिघलकर

    ये जेल जो मेरे ख़ून में बह रही है

    मैं इसको निकाल नहीं सकता

    ये मेरा सच है जिसे मैं

    बचपन से अब तक ढोता हूँ

    जब भी मेरे भीतर कुछ उपजता है सच्चा और क्वारा

    मेरा ख़ून ही उसको धो डालता है

    मैं इस जेल को बार-बार ना कहना चाहता हूँ

    मैं इस अंधी सुरंग को

    ना कहना चाहता हूँ

    मैं बचपन के स्कूल को

    इस जेल को

    ना कहना चाहता हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विवेक चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए