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मेरा पता

mera pata

संजय कुंदन

संजय कुंदन

मेरा पता

संजय कुंदन

और अधिकसंजय कुंदन

    अपना पता कोई ठीक-ठीक कैसे बता सकता है

    अब यह पूरी तरह सच थोड़े ही है कि

    मैं किसी एक शहर के किसी मोहल्ले के

    किसी फ्लैट में रहता हूँ

    और यह भी सच कहाँ है कि

    मैं किसी दफ़्तर में रहता हूँ

    आठ से दस घंटे रोज़ाना

    कुछ जगहों पर हमेशा किसी का पाया जाना

    वहाँ उसका रहना नहीं है

    मैं बार-बार वहीं चला जाता हूँ

    जहाँ रहना चाहता हूँ

    भले ही कोई मुझे किसी बस स्टैंड पर खड़ा देखे या

    किसी बहुमंज़िली इमारत की

    एक छोटी कोठरी में दूसरे का दिया हुआ काम करते

    अपनी मर्ज़ी की जगह पर रहना

    एक तनी हुई रस्सी पर चलने से कम नहीं है

    अगर मैं कहूँ कि एक रस्सी है मेरा पता तो

    यह ग़लत नहीं होगा पर

    ऐसा कौन है जो मुझे वहाँ मिलेगा

    मिलने वाले सुविधाजनक जगह पर

    मिलना चाहते हैं

    मैं उनसे कभी नहीं मिलता

    जो इसलिए मिलते हैं कि

    मुझसे मिला कर रख सकें

    उनसे हाथ मिलाते हुए

    असल में मैं उनका हाथ झटक रहा होता हूँ

    जब वे अपनी बनावटी हँसी

    मेरी ओर फेंक रहे होते हैं

    मैं उनसे बहुत दूर निकल चुका होता हूँ

    अपने अड्डे की ओर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : संजय कुंदन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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