रातभर
वकुल वृक्ष गिरा रहा है फूलों को
श्यामल वारिदों से रिसते
जल-बिंदुओं की तरह।
न जाने वह पृथ्वी माता के कानों में
कौन-सी मधुर बातें सुनाता है,
सुगंधित अनुराग का समाचार पहुँचाता है,
जननी पुलकित हो
सहर्ष निहार रही है।
वकुल पादप अनुराग से भरकर
सुमनमुक्ताहारों को माता के गले में पहनाता है,
चरणों में फल चढ़ाता है।
यह कैसी अनोखी मातृ-पूजा है?
पुष्प सुगंध की बूँदें
न जाने किस अज्ञात आनंद स्मित के संकेत हैं
शकुन्त-कलरवों को
शायद सुरभित सुमनों में ढाल दिया है
ज्योतिरिंगणों की चमक-दमक को
शायद उसने परिमल कणों में बदल लिया है।
गगन-राज्य का दूत बनकर
न जाने वह धरा को
कौन सा प्रेम-संदेश पहुँचा रहा है
क्या यह भूरुह द्वारा भू का स्वर्णाभिषेक है!
गगन-तरू पर टिमटिमाते तारों-सी
फलों की रंगवल्लियों से
हो रहा है धरा का शृंगार!
प्रेम-संदेश को,
ये पुष्प धरणी पर लाए हैं!
विफलता को दूर करने के लिए आए हुए
क्या ये सुरभिगर्भित सांत्वना के सुमन हैं?
- पुस्तक : लो (पृष्ठ 86)
- रचनाकार : बी. गोपाल रेड्डी
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 1989
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