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मशालची

mashalchi

ध्यान सिंह

ध्यान सिंह

मशालची

ध्यान सिंह

और अधिकध्यान सिंह

    पैरों में उसके अँधेरा ही रहता

    पर वह सतत अँधेरे को मथता

    बलती आग उठाकर

    आगे-आगे चलता

    अँधेरे में

    रोशनी करता

    उबड़-खाबड़ में

    मार्ग प्रशस्त करता

    भेद बताता

    अनुगामियों से संधान करवाता

    जो साथी गिरे तो कहर बरपाता

    ज़रूरत पड़ने पर

    आग बरसाता

    दुश्मन को मार गिराता

    भले सिर पर अपने धुआँ उठाता

    मगर लौ ही तलाशता

    लौ ही चाहता...

    स्रोत :
    • रचनाकार : ध्यान सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए अनुवादक द्वारा चयनित

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