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मरना

marna

रमाशंकर सिंह

और अधिकरमाशंकर सिंह

    कई बार सुना है कि

    सब मर जाएँगे

    लेकिन ऐसा भी क्या मरना कि

    घर को महीने भर की दिहाड़ी भेजने से पहले ही

    गिरकर मरता है राजमिस्त्री

    हर शहर में

    बहुमंज़िला इमारत बनाते समय

    बिजली का तार जोड़ते-जोड़ते

    कि एक दिन जीवन की साँस टँगी रह जाती है

    बिजली के किसी खंभे पर

    बिजली मैकेनिक की

    भूखे बच्चों की अपेक्षाओं से भारी

    मिट्टी के मलबे में दबकर

    ठेके से बन रहे नाले में

    मरता है मज़दूर

    दिल्ली में लखनऊ में पटना में

    या भोपाल में

    जहाँ रहते हैं वज़ीर-ए-आज़म और उनके लोग

    वहाँ मरते हैं दम घुटने से

    कुछ ख़ूबसूरत नौजवान

    शहर के मेनहोल में

    अपने गाँव के उदास श्मशानों से बहुत दूर

    नामवर और बेनाम शहरों की झुग्गियों में

    रीवा और गोंडा के दिहाड़ी मज़दूर मरते हैं

    बिना शोर-शराबा किए

    ग़ाज़ीपुर के जुम्मन मियाँ तो ग़ायब ही हो गए

    शिवकाशी की पटाख़ा फ़ैक्ट्री की आग में

    जैसे ग़ायब होती है फुलझड़ियों की लौ आसमान में

    कुछ लोग और हैं

    मरते हैं पूरे तामझाम से

    बड़े अस्पतालों में

    मुस्कराते फ़ोटुओं के साथ

    कुछ तो और हैं ख़ुशनसीब

    जिनके लिए लिखे हैं कवियों ने शोकगीत।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रमाशंकर सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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