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मरघिल्ले कुत्ते के लिए लोरी

marghille kutte ke liye lori

अनाम कवि

अनाम कवि

मरघिल्ले कुत्ते के लिए लोरी

अनाम कवि

और अधिकअनाम कवि

    यह मौसम, तेरी नींद के रास्ते में खड़ा है

    तेरी मार खाई अधमरी देह और रिसते ज़ख़्म

    तेरी नींद के रास्ते में अड़े हैं।

    हालाँकि यह तंग गली तेरी जन्मभूमि है और

    घूरे का वह कोना, तेरी मातृभूमि है और

    इतिहास में तू समकालीन है बहुत बड़े लोगों का

    फिर भी तू कुकियाता है बेतरह

    अपने रोने से नींद लेती दुनिया पर क्यों भेजता है लानत

    सो जा कि यह रात है बेरहम

    लेकिन पेड़ों ने गिराए हैं पत्ते

    घुसकर सो जा उन्हीं के ढेर में

    तेरी नींद की हिफ़ाज़त में

    पिता की तरह खड़े होंगे पेड़

    जाड़े-पाले और बारिश के ख़िलाफ़

    सो जा कि दुनिया से जा चुकी हैं लोरियाँ

    और वह चाँद, पीले सिक्के की तरह

    गिर रहा है झील में

    सो जा कि लोग अब भी छोड़ देते हैं जूठन

    बच्चे नहीं खाते अपने हिस्से का पूरा भाग

    पाले में पेड़ों से टपक पड़ती हैं चिड़ियाँ, तेरी भूख में

    सो जा और मत भौंक

    दबे पाँव जा रही बलाओं पर

    मत भौंक ज़रा-ज़रा-सी आहटों पर

    मत बजा पहरा, फोकट में

    सो जा कि कल उठेगी रसोई से गंध

    और भरे होंगे मुसाफ़िरख़ाने

    लोग तापेंगे आग गोल घेरों में

    फिर लगाना चक्कर इनके आस-पास

    फिर अपनी दोस्ती का वास्ता देकर हिलाना पूँछ

    फ़िलवक़्त डूबकर सो जा, जूठन के सपनों में

    कि नींद पूरी नहीं पड़ रही सबके हिस्से में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक अनाम कवि की कविताएँ (पृष्ठ 150)
    • संपादक : दूधनाथ सिंह
    • रचनाकार : अनाम कवि
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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