एक घोड़े जैसा बेलगाम
एक लोमड़ी जैसा धूर्त
एक मोर जैसा नाचने वाला
एक कबूतर की तरह बेशर्म
इन गुणों वाले पुरुषों को स्त्री ने अपने मन जंगल में
घूमने देना चाहिए—जैसे चाहे, जब चाहे
उसने ख़ुशी से आश्रय लेना चाहिए खांडव वन में
भुगत लेना चाहिए
द्रौपदी के स्वप्न का अज्ञातवास
स्वयं ही स्वर्णमृग का करना चाहिए शिकार
पूरी करने चाहिए वनवास में सीता की अपूर्ण इच्छाएँ
शबरी के बेर थूक देने चाहिए
और एडम की अनुपस्थिति में भी
चखने चाहिए मन भर ईव के मनपसंद सेब
भूख लगने पर
खोदकर निकालने चाहिए जंगली कंदमूल
फिर भी भूख न मिटी तो
खानी चाहिए लाल काली चींटियाँ
जामवंत से मित्रता कर
अपने हक़ के जुगनुओं की प्रतीक्षा किए बग़ैर
पसंदीदा जानवर की चर्बी से
अपनी गुफा में जलाने चाहिए दिए
कुलदीपक के लिए अपने जीवन को ही बाती न बनाते हुए
छीन लेना चाहिए उजाला
ज़रूरत भर का… अपने लिए
आनंदपूर्वक सिलना चाहिए
अपने लिए पर्णवस्त्र
ढाक कर केवल इच्छुक अंग
या फिर घूमना चाहिए अलमस्त
लिए अपना कठोर नग्न सौंदर्य
वनराज की भूमिका में कोई
बताने लगे हक़ जंगल पर
तो दिखाना चाहिए बिना किसी अवरोध के
अपना आदिम जंगली स्वरूप
दहका कर सघन विचारों की अग्नि
भस्म करना चाहिए उसका अवांछित अधिकार
अपना हरा-भरा घनीभूत अरण्य
संस्कृति के डर से
किसी अर्धांग अक्षम पुरुष के हवाले करने से अच्छा है
स्त्री को विश्वास करना चाहिए प्रकृति के ऋतुचक्र पर
निर्माण करना चाहिए
अपनी आदिम सृजनात्मकता से
एक नैसर्गिक प्रसन्न अरण्य।
- पुस्तक : सदानीरा
- संपादक : अविनाश मिश्र
- रचनाकार : योगिनी राऊल
- प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका
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