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मंजुभाषिणी

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बलराम शुक्ल

बलराम शुक्ल

मंजुभाषिणी

बलराम शुक्ल

और अधिकबलराम शुक्ल

     

    एक

    मधुर अधर के
    निर्मल पल्लवों पर खिली हुई
    तुम्हारी हँसी के सुंदर पुष्पगुच्छों को
    हे सुंदरी
    मैं अपनी आँखों से
    हाथों से
    होंठों से
    बार-बार चुनता हूँ।

    दो

    प्रेम के धागों से गुँथी
    तुम्हारी दोनों आँखों में सुशोभित होते हुए कटाक्षों से बनी
    इस जयमाला को
    हे रुचिरे
    मैं तीनों लोकों के विजेता की तरह धारण करता हूँ।

    तीन

    वज्र की तरह तीखी 
    और तलवार की तरह ख़तरनाक
    तुम्हारी भौंहों पर
    मेरा दुःसाहसी मन
    बार बार लड़खड़ाता हुआ
    मेरे बार-बार रोकने पर भी
    अपने क़दम रख ही देता है।

    चार

    हे हृदयेश्वरी,
    मेरा हृदय
    निरंतर तुम्हारी यादों में रमण करना चाहता है
    वे यादें जो काम के पौरुष को उज्जीवित करने वाली हैं
    और जिनके साथ रहना
    मानो स्वर्ग की वाटिका में रहना है।

    पाँच

    तुम्हारा विरह
    सारी रात खिलकर महकता है
    और तुम्हारी कठोरता से कुंठित होने से
    प्रातःकाल आँसू बनकर
    आँखों से हरसिंगार के फूल की तरह
    गिर पड़ता है।

    छह

    इस जन्म में
    मैने बस तीन चीज़ें कमाई हैं
    नवयौवन के विलास का माधुर्य,
    अमृत से भी रसीली कविता
    थोड़ा बहुत धर्माचरण
    इन तीनों को 
    मैं तुम्हारे एक कटाक्ष पर निछावर कर दूँगा।

    सात

    बलराम शुक्ल द्वारा रचित यह कविता
    स्वयं पराम्बा सरस्वती द्वारा प्रेषित है
    यह माता की तरह रसिक जनों का पोषण करे
    और पुत्री की तरह उनके हृदय को हर्षित करे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : बलराम शुक्ल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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