खोङ्ममेलै

khonmmelai

लमाबम कमल सिंह

लमाबम कमल सिंह

खोङ्ममेलै

लमाबम कमल सिंह

और अधिकलमाबम कमल सिंह

    बढ़ता जल में उगता थल में

    लेता आसरा पेड़-पौधों का

    गुँथता माला में, हठी, सजता गुलदस्ते में

    घबराता पवन से, शर्माता भ्रमर से

    नत सूर्योदय पर, मुर्झाता धूप में

    लता, कहा जा सकता पौधा ही

    गेंदा सा रंग, रूप येरुमेलै सा

    काठी कम्बोङ् सी, पत्ते कबाक से

    खिलता जल पर, डूबने का भय?

    खिलता थल पर, कुचलने का डर?

    गोपित सुगंध, भय है भ्रमर का?

    छिपा है वृक्ष पर, तोड़े जाने से आशंकित?

    पंक्ति में विकसित, एकाकीपन से भीत?

    वामनी आकार धरा, आँधी के डर से?

    रहित सुस्वादु फलों से, भयभीत भार से?

    उत्फुल्ल नहीं अधिक, डर है उपहास का?

    रहे काँटों में या घिरा झाड़ियों से

    बना दृष्टि-केंद्र, खिला जहाँ भी!

    छिपना क्या लाभकर, रूप ही जब बैरी है

    देवालय के निकट उगो, कवि के हृदय में खिलो

    कभी भी व्यापे थोड़ा भी डर

    अनुभव करोगे हृदय में जीवन-भर शांति

    1. खोङ्ममेलै : एक आर्किड विशेष, जो गेन्दई रंग का होता है

    2. येरुमेलै : लाल और श्वेत रंग के मिश्रणवाला आर्किड।

    3. कम्बोङ् : पानी में उगनेवाली घास, जिसके पत्ते तलवार की भाँति होते हैं। जब तना थोड़ा मोटा हो जाता है तो इसके भीतर काला सा पदार्थ भर जाता है, जिसे कच्चा या तलकर या भूनकर खाया जाता है।

    4. कबाक : चौड़ी तलवार विशेष।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कमल : संपूर्ण रचनाएँ (पृष्ठ 52)
    • संपादक : देवराज
    • रचनाकार : कमल
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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