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मनहूसीयत

manhusiyat

नीलम शंकर

नीलम शंकर

मनहूसीयत

नीलम शंकर

चिड़ियों की फ़ज़ल की

अज़ान आनंदित नहीं करती

खिली गुलाबी सफ़ेद

ये जो मधुमालती है

यह भी बेनूर बेमुरौव्वत सी लगती।

अरूणिमा पर्दा को भेदती

हुई आँखो में चुभती है।

रात को कोई दुःस्वप्न नहीं देखा

फिर भी अरूणोदय डराता है।

मेरे मन को बहलाने वास्ते

दिन भर अलग-अलग लय में

कोयल कूकती रहती है

उसको मुझसे प्यार है बेइंतहा

हम ही हैं जो उसके निःस्वार्थ

प्रेम को बगलियाए बैठे हैं बेदिली से।

इतने मनहूस तो कभी नहीं रहे

यह मनहूसियत है कि

देह दिल से ऐसे चिपकी है

अपने सौ पादों से कनखजूरा

मेरे चमड़ी में चिपकी

मेरे लहू की मिठास से प्रेम में

मतवाली हुई पड़ी है

अड़तालिस डिग्री का ताप के बाद की बारिश से

ऊधम मचाते दुआर मोहार की रखवाली करते कुत्ते

अपने पंखो पर पड़ी बूँदों को झटकती गौरैया, महोख, कोयल

भी दिल को नहीं बहलाते

हमारे पड़ोसी के स्त्रीविहीन घर में

पूरा समय की गर्भवती की आर्द पुकार

पड़ती कानो में है लेकिन

ख़ून का दौरा पूरे शरीर में अपनी रफ़्तार से होने लगता है।

स्रोत :
  • रचनाकार : नीलम शंकर
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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