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मंगलेश के लिए

manglesh ke liye

शिवमंगल सिद्धांतकर

शिवमंगल सिद्धांतकर

मंगलेश के लिए

शिवमंगल सिद्धांतकर

और अधिकशिवमंगल सिद्धांतकर

    पर्वत पर बैठकर लोग जब

    मैदान को बौना मान लेते हैं

    चींटी और पहाड़ के रिश्ते को

    हाथी और चींटी के रिश्ते को

    कालांतर में चरितार्थ जान लेते हैं

    उपचार को हम आते तो हैं

    सिर्फ़ हाथ मिलते होते हैं

    मंगलेश की तरह नहीं जो

    हाथ मल-मल कर कुछ पैदा करता होता है

    आँखों को दागने के लिए नहीं

    संवेदना के कुंडली-जागरण के लिए

    वह वैसा कुछ करता होता है

    छोटा क़द होकर भी लंबुओं से ज़्यादा लंबी लिख लेता है

    शमशेर की तरह

    कहना प्रसंगेतर हो जाएगा जो

    निकलता क्यों नहीं रीति-रंध्रों से

    अपवादों से छोड़कर

    पाँव पर उगे पीपल पर बैठकर भी लोग जब

    पहाड़ को बड़ा मान लेते हैं

    हम तो मैदान के लोग हैं

    सूर्यग्रहण के फलित योगायोग हैं

    फिर कवच लगाकर हम मुक़ाबला करेंगे

    सर क़लम हो जाएँ चाहे जिसका हो

    मैदान से बढ़ते हुए लोग

    यह संकल्प लेते हैं

    लड़ेंगे, हम लड़ेंगे साथी

    मर कर स्वर्ग लेंगे

    उत्तराखंड जिसे आप कहते हो

    स्रोत :
    • पुस्तक : दंड की अग्नि (पृष्ठ 47)
    • रचनाकार : शिवमंगल सिद्धांतकर
    • प्रकाशन : अधिकरण प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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