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मैं वहाँ मिलूँगा तुम्हें

main wahan milunga tumhein

सुघोष मिश्र

सुघोष मिश्र

मैं वहाँ मिलूँगा तुम्हें

सुघोष मिश्र

अंतरिक्ष की काली स्लेट पर

बिखरी आकाशगंगाओं में ऐसी कोई पाँत नहीं

जिसे कहीं से जोड़कर कहीं तक पढ़ें

तो मेरा छोटा-सा नाम नज़र जाए

वह दिखेगा धंसी हुई सड़कों के ऊबड़-खाबड़ में

या सूखे बरगद पर बैठे पाखियों के अनुक्रम में

या बढ़ियाई आमी की लहरों के आवर्त में

या मधुमालती की फुनगियों के देवनागरी घुमाव में

मैं नहीं रहूँगा तो भी दिखूँगा शायद

दोस्तों के साथ तस्वीरों में

या आत्मीय जन की स्मृतियों में

जब कभी सचमुच दिखूँ तो

मुझे किनारों पर मत खोजना

मैं थककर डूब मरा हूँगा किसी समुद्र को मथते हुए

या अपरिचित नदियों में किसी एक के ठीक बीचोबीच

भँवरों से टकराते हुए

या मिलूँगा पस्त अपने खेतों के बीच

जेठ की दुपहर को कुदाल से कोड़ डालने के बाद

रक्त से सींचते हुए खीरे-ख़रबूजे को

या अपने लोगों के बीच

उन पर बरसती गोलियों को अपने सीने पर झेलते हुए

मुझे मंचों पर मत खोजना

नेपथ्य मेरी जगह नहीं

मैं तुम्हें मिलूँगा दर्शक-दीर्घाओं में

मुस्कुराता या खीजता हुआ

मुझे संग्रहों में मत खोजना

मैं तुम्हें मिलूँगा पंक्तियों के बीच

जहाँ अशब्दों में भी नहीं होगा कोई गूढ़ार्थ

उन चमकीले तारों की टिमटिम में

मुझे ठीक उस पल खोजना

जब उजला बुत जाता है

और अँधेरे की झलक भी नहीं मिलती

मेरी आख़िरी इच्छा है कि एक दिन मैं ख़ुद से मिल जाऊँ

दिन और रात को जोड़ने वाले

उस लाल धागे में पिरोया हुआ

जिसे खोजते हुए मैं कहाँ नहीं भटका पागलों की तरह

मेरे दोस्तो!

मुझे भूल से भी अमरता की सूची में मत खोजना

मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ मरूँगा

अलक्षित और संपूर्ण

मार भी दिया गया तो

किसी को दोष नहीं दूँगा

मैं वापस आऊँगा तूफ़ानों के बीच

और धूल बनकर बिखर जाऊँगा

मुझे किनारों पर मत खोजना

मैं बीच रास्ते में मिलूँगा तुम्हें

स्रोत :
  • रचनाकार : सुघोष मिश्र
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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