मैं उसके लिए उसकी पहचान चाहती हूँ
main uske liye uski pahchan chahti hoon
सुनो, आज मैं तुमसे एक वायदा चाहती हूँ
मेरे गर्भ में पल रही संतान यदि
बेटी हो तो तुम उसे
बेटी ही कहकर पुकारोगे उम्र भर
जब ममता और स्नेह से छलछला आ रहा हो
तुम्हारा हृदय, तब
स्नेह के उन स्वर्णिम क्षणों में भी
तुम्हारे मुँह से उस नन्ही बिटिया के लिए
बेटी ही निकलेगा
ऐसा नहीं है कि इतिहास के कोनों-अंतरों में
नहीं हैं उदाहरण बेटी को लाड़-प्यार के
ऐसा भी नहीं है कि हम और तुम इस धरती के
पहले माँ-पिता होंगे जो बेटी को देंगे मन भर स्नेह
लेकिन बेटियों पर स्नेह लुटाते हुए भी
सिर उठाती रही है पितृसत्तात्मक भाषा
जब हृदय लुटाते हुए अपनी बेटी पर
कहते आए हैं पिता और माँ भी कि
‘यह हमारी बेटी नहीं, बेटा है।’
सुनो, अब वह समय आ गया है कि
हम प्रेम के प्रतिमान बदल दें
उपमाओं के साथ-साथ चलो
अब सारे उपमान बदल दें
मुझे यह वायदा चाहिए तुमसे आज
कि जब-जब छलकेगा तुम्हारे हृदय से प्रेम
गर्भ में पलती हमारी बेटी के लिए
वह पूर्णतः हमारी बेटी के लिए ही होगा
कि तुम दिल के किसी अँधेरे कोने में भी
नहीं अपेक्षा करोगे उससे बेटा बन जाने की
चलो हम शुरुआत करें अपनी बेटी से ही, और
ढूँढ़ें उसमें सब उसके ही गुण
चलो हम ‘पुरुष’ शब्द में छिपे सारे निहितार्थों को
एकबारगी खंगाल डालें, और
हर पुरुष को छोड़ दें स्वयं अपने गुण अर्जित करने के लिए
चलो हम स्त्री शब्द के सारे मैले-कुचैले अर्थों को
धो-पोंछ डालें अपने हाथों से और
गढ़ने दें उन्हें ख़ुद अपने नए अर्थ
चलो हम अपनी बेटी को पुकारें बेटी ही
और उसे आज़ादी दें कि
खिले वह जंगली फूल-सी ही और
फेंक दें उन सारे औज़ारों को जिनसे
कतर कर गमलों में खिलाया जाता है फूलों को
मैं अपनी बेटी को बेटी ही कहना चाहती हूँ और
उस पर उसके हिस्से के सारे रंग और
ख़ुशबू उड़ेल देना चाहती हूँ।
- रचनाकार : ज्योति चावला
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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