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मैं सेमर का फूल बनूँगी

main semar ka phool banungi

आकृति विज्ञा 'अर्पण’

आकृति विज्ञा 'अर्पण’

मैं सेमर का फूल बनूँगी

आकृति विज्ञा 'अर्पण’

और अधिकआकृति विज्ञा 'अर्पण’

    किसी देवता के दर पर

    नहीं चढ़ाई जाऊँगी...

    ना दुल्हन के जूड़े में,

    दूल्हें के सेहरे में 

    ना नवयुगलों की बनूँ निशानी

    ना गीतों में गायी जाऊँगी...

    मैं अनभिज्ञा जग की नज़रों से

    नाप सकूँ रफ़्तार सड़क की

    बूढ़े श्रमिकों के एंड़ी की

    फटहन मैं सहलाऊँगी

    इससे अच्छा क्या होगा...?

    ना समय किसी का मेरे हिस्से

    ना चाहेगा कोई गंध मेरी

    जग से हारी एक वियोगिन

    देख मुझे मुसकाएगी

    इससे अच्छा क्या होगा...

    इक बच्चा अनजाना 

    गंध रीति का भान हो

    चिंता होगी मर्यादा की

    पद जैसा अभिमान हो

    खेलेगा वो मेरे संग

    इससे अच्छा क्या होगा...

    फागुन के आने से पहले

    पथ दमक रहा हो लाली से

    लज्जा से उपर उठना है

    कहें स्वयंभू काली से

    बन निष्काम सुंदरी झर जाऊँ

    इससे अच्छा क्या होगा...

    मैं सेमर का फूल बनूँगी...

    किसी देवता के दर पर

    नहीं चढ़ाई जाऊँगी...

    स्रोत :
    • रचनाकार : आकृति विज्ञा 'अर्पण’
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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