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मैं सहमत न थी

main sahmat na thi

लीना मल्होत्रा राव

लीना मल्होत्रा राव

मैं सहमत न थी

लीना मल्होत्रा राव

और अधिकलीना मल्होत्रा राव

    नदी की लहरो!

    मैं नहीं बन पाई मात्र एक लहर

    नहीं तिरोहित किया मैंने अपना अस्तित्व नदी में

    तुम्हारे जैसा पाणिग्रहण नहीं निभा पाई मैं

    इसलिए क्षमा माँगनी है तुमसे

    वृक्षो! तुमसे नहीं सीख पाई दाता का जीवन

    तुम्हारे फल, छाया और पराग देने के पाठ नहीं उतार पाई जीवन में

    मेरी आशाओं के भीगे पटल पर धूमिल पड़ते

    तुम्हारे सबक़ों से क्षमा माँगनी है मुझे

    सूरज को पस्त करके लौटी गुलाबी शामो!

    तुम्हें गुमराह करके

    अपने डर के काले लबादों में ढँक कर तुम्हें

    काली रातों में बदलने के जुर्म में

    क्षमा माँगनी है तुमसे

    क्षमा माँगनी है कविता के उन ख़ामोश अंतरालों से

    जो शब्दों के अधिपत्य में खो गए

    उन चुप्पियों से

    जो इतिहास के नेपथ्य में खड़ी रही बिना दख़लंदाज़ी के

    उन यायावरी असफलताओं से

    जिन्होंने समझौते की ज़मीनों पर नहीं बनाए घर

    उन बेबाक़ लड़कियों से क्षमा माँगनी है मुझे

    जो मुस्कराते हुए चलती हैं सड़क पर

    बेख़ौफ़ जो उस लड़के की पीठ को राइटिंग पैड बना

    काग़ज़ रखकर लिख रही हैं; शायद कोई एप्लीकेशन

    जो बस में खो गई हैं अपने प्रेमी की आँखों में

    जिसने उँगलियाँ फँसा ली हैं लड़के की उँगलियों में

    उन लड़कियों के साहस से क्षमा माँगनी है मुझे

    जिनकी निष्ठा बौनी पड़ती रही नैतिकता के सामने

    जो आधी औरतें आधी क़िला बनकर जीती रहीं तमाम उम्र

    जिन्हें अर्धंगिनी स्वीकार नहीं कर पाए हम

    जिनके पुरुष नहीं बजा पाए उनके नाम की डुगडुगी

    उन दूसरी औरतों से क्षमा माँगनी है मुझे

    मुझे क्षमा माँगनी है

    आकाश में उड़ती क़तारों से अलग पड़े पंछी से

    आकाश का एक कोना उससे छीन

    उस पर अपना नाम लिखने के लिए

    उसके दुख में अपनी सूखी आँखों के निष्ठुर चरित्र के लिए

    रौंदे गए अपने ही टुकड़ों से

    अनुपयोगी हो चुके रद्दी में बिके सामान से

    छूटे और छोड़े हुए रिश्तों से अपने स्वार्थ के लिए क्षमा माँगनी है मुझे

    नहीं बन पाई सिर्फ़ एक भार्या, जाया और सिर्फ़ एक प्रेयसी

    नहीं कर पाई जीवन में बस एक बार प्यार

    इसलिए क्षमा माँगनी है मुझे तुमसे

    तुम्हारी मर्यादाओं का तिरस्कार करने के लिए

    घर की देहरी छोड़ते वक़्त

    तुम्हारी आँखों की घृणा को अनदेखा करने के लिए

    घर की देहरी छोड़ते वक़्त

    तुम्हारी आँखों की घृणा को अनदेखा करने के लिए

    मुझे क्षमा माँगनी है तुमसे!

    स्रोत :
    • पुस्तक : मेरी यात्रा का ज़रूरी सामान (पृष्ठ 9)
    • रचनाकार : लीना मल्होत्रा राव
    • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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