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मैं लौट जाऊँगा

main laut jaunga

उदय प्रकाश

उदय प्रकाश

मैं लौट जाऊँगा

उदय प्रकाश

और अधिकउदय प्रकाश

    क्वांर में जैसे बादल लौट जाते हैं

    धूप जैसे लौट जाती है आषाढ़ में

    ओस लौट जाती है जिस तरह अंतरिक्ष में चुपचाप

    अँधेरा लौट जाता है किसी अज्ञातवास में अपने दुखते हुए शरीर को

    कंबल में छुपाए

    थोड़े-से सुख और चुटकी-भर सांत्वना के लोभ में सबसे छुपकर आई हुई

    व्यभिचारिणी जैसे लौट जाती है वापस अपनी गुफा में भयभीत

    पेड़ लौट जाते हैं बीज में वापस

    अपने भाड़े-बरतन, हथियारों, उपकरणों और कंकालों के साथ तमाम विकसित सभ्यताएँ

    जिस तरह लौट जाती हैं धरती के गर्भ में हर बार

    इतिहास जिस तरह विलीन हो जाता है किसी समुदाय की मिथक गाथा में

    विज्ञान किसी ओझा के टोने में

    तमाम औषधियाँ आदमी के असंख्य रोगों से हार कर अंत में जैसे लौट जाती हैं

    किसी आदिम स्पर्श या किसी मंत्र में

    मैं लौट जाऊँगा जैसे समस्त महाकाव्य, समूचा संगीत, सभी भाषाएँ और सारी कविताएँ लौट जाती हैं एक दिन ब्रह्मांड में वापस

    मृत्यु जैसे जाती है जीवन की गठरी एक दिन सिर पर उठाए उदास जैसे रक्त लौट जाता है पता नहीं कहाँ अपने बाद शिराओं में छोड़कर

    निर्जीव-निष्पंद जल

    जैसे एक बहुत लंबी सज़ा काट कर लौटता है कोई निरापराध क़ैदी

    कोई आदमी

    अस्पताल में

    बहुत लंबी बेहोशी के बाद

    एक बार आँखें खोलकर लौट जाता है

    अपने अंधकार में जिस तरह।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रात में हारमोनियम (पृष्ठ 16)
    • रचनाकार : उदय प्रकाश
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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