मैं कविता की दुनिया का स्थानीय नागरिक नहीं हूँ
main kawita ki duniya ka asthaniya nagarik nahin hoon
सदानंद शाही
Sadanand Shahi
मैं कविता की दुनिया का स्थानीय नागरिक नहीं हूँ
main kawita ki duniya ka asthaniya nagarik nahin hoon
Sadanand Shahi
सदानंद शाही
और अधिकसदानंद शाही
मैं कविता की दुनिया का स्थायी नागरिक नहीं हूँ
मेरे पास नहीं है इसका कोई ग्रीन कार्ड
कविता की दुनिया के बाहर
इतने सारे मोर्चे हैं
जिनसे जूझने में खप जाता है जीवन
इनसे न फ़ुरसत मिलती है, न निजात
कि कविता की दुनिया की नागरिकता ले सकूँ
इसलिए जब-तब
आता जाता रहता हूँ
कविता की दुनिया
बस पर्यटन है मेरे लिए
न कोई चुनौती
न कोई मोर्चा
न ही कोई क़िला
जिसे जीतने की बेचैनी हो
छुट्टियों में आता हूँ
बेपरवाह घूमता हूँ
थोड़ी-सी हवा
थोड़ा-सा प्यार
थोड़ी-सी भावुकता
बटोर कर रख लेता हूँ
जैसे ऊँट भर लेता है अपने गुप्त थैले में
ढेर सारा पानी
फिर लौट जाता हूँ
उसी दुनिया में वापस
जहाँ छोटे-मोटे मोर्चे
इंतज़ार करते रहते हैं
जैसे बछड़े
गायों के लौटने का।
- रचनाकार : सदानंद शाही
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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