मैं अन्नदाता नहीं हूँ
मेरे नाम के आगे
लगाया गया आपका यह
अलंकार वापिस करता हूँ।
दाता तो आप हैं!
सभी प्रकार के दाता
मसलन मौत के दाता,
जीवन के दाता!
मैं तो मौत और जीवन के बीच
पिसने वाली चीज़ हूँ।
मेरे मार्फ़त भुरभुरी ज़मीन पर
तैयार की गई डोळियों में तो
कर्जा ही उगता आया है
अन्न तो आपके संगमरमरी महलों में ही उगता है साहिब!
दाता तो आप हो!
और अन्न मसखरा होता है,
इसीलिए इस वर्ष आपने मेरे साथ
बड़ी अच्छी मसखरी की है कि
आपने मेरा ऋण माफ़ कर दिया!
आप दाता हो!
आप तो इससे भी
भयानक मसखरी कर सकते हो मसलन—
अपने शरीर की रखवाली में मरने वाले की लाश पर
शहीदी चिट लगाकर उसकी जोड़ायत की आँखों से ढलते आँसुओं को
वहीं के वहीं स्थिर कर सकते हो।
स्थिर कर सकते हो आप
हमारे फेफड़ों में पहुँचती ऑक्सीजन को
गर मैं अपने खेत की डोळियों में
अन्न उगाने की कोशिश करूँ!
- पुस्तक : सदानीरा
- संपादक : अविनाश मिश्र
- रचनाकार : रामस्वरूप किसान
- प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका
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