महानगर के जग-मग करते व्यस्त राजपथ के इस पार
जाने कब से ताक रही है टुकुर-टुकुर बकरी लाचार
उसको क्या मालूम कि यह है वधिकों की नगरी ख़ूँख़ार
उसके सिर पर स्वार्थ-लोभ की लटक रही चम-चम तलवार
उसके भूचुंबी थन घिस-घिस छिल-छिल जाते बारंबार
दूध भरे थन से रह-रहकर बह पड़ती लोहू की धार
उसके लिए नहीं रुक सकती पल भर ट्रैफ़िक की रफ़्तार
माँ-माँ करते उसके बच्चे आस देखते हैं उस पार।
- रचनाकार : राकेश रंजन
- प्रकाशन : हिंदी समय
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