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माफ़ी

mafi

फ़रीद ख़ाँ

और अधिकफ़रीद ख़ाँ

    सबसे पहले मैं माफ़ी माँगता हूँ हज़रत हौव्वा से।

    मैंने ही अफ़वाह उड़ाई थी कि उस ने आदम को बहकाया था

    और उसके मासिक धर्म की पीड़ा उसके गुनाहों की सज़ा है जो रहेगी सृष्टि के अंत तक।

    मैंने ही बोये थे बलात्कार के सबसे प्राचीनतम बीज।

    मैं माफ़ी माँगता हूँ उन तमाम औरतों से

    जिन्हें मैंने पाप योनि में जन्मा हुआ घोषित करके

    अज्ञान की कोठरी में धकेल दिया

    और धरती पर क़ब्ज़ा कर लिया

    और राजा बन बैठा। और वज़ीर बन बैठा। और द्वारपाल बन बैठा।

    मेरी ही शिक्षा थी यह बताने की कि औरतें रहस्य होती हैं

    ताकि कोई उन्हें समझने की कभी कोशिश भी करे।

    कभी कोशिश करे भी तो डरे, उनमें उसे चुड़ैल दिखे।

    मैं माफ़ी माँगता हूँ उन तमाम राह चलते उठा ली गईं औरतों से

    जो उठा कर ठूँस दी गईं हरम में।

    मैं माफ़ी माँगता हूँ उन औरतों से जिन्हें मैंने मजबूर किया सती होने के लिए।

    मैंने ही गढ़े थे वे पाठ कि द्रौपदी के कारण ही हुई थी महाभारत।

    ताकि दुनिया के सारे मर्द एक होकर घोड़ों से रौंद दें उन्हें

    जैसे रौंदी है मैंने धरती।

    मैं माफ़ी माँगता हूँ उन आदिवासी औरतों से भी

    जिनकी योनि में हमारे राष्ट्रभक्त सिपाहियों ने घुसेड़ दी थी बंदूक़ें।

    वह मेरा ही आदेश था।

    मुझे ही जंगल पर क़ब्ज़ा करना था। औरतों के जंगल पर।

    उनकी उत्पादकता को मुझे ही करना था नियंत्रित।

    मैं माफ़ी माँगता हूँ निर्भया से।

    मैंने ही बता रखा था कि देर रात घूमने वाली लड़की बदचलन होती है

    और किसी लड़के के साथ घूमने वाली लड़की तो निहायत ही बदचलन होती है।

    वह लोहे की सरिया मेरी ही थी। मेरी संस्कृति की सरिया।

    मैं माफ़ी माँगता हूँ आसिफ़ा से।

    जितनी भी आसिफ़ा हैं इस देश में उन सबसे माफ़ी माँगता हूँ।

    जितने भी उन्नाव हैं इस देश में,

    जितने भी सासाराम हैं इस देश में,

    उन सबसे माफ़ी माँगता हूँ।

    मैं माफ़ी माँगता हूँ अपने शब्दों और अपनी उन मुस्कुराहटों के लिए

    जो औरतों का उपहास करते थे।

    मैं माफ़ी माँगता हूँ अपनी माँ को जाहिल समझने के लिए।

    बहन पर बंदिश लगाने के लिए। पत्नी का मज़ाक़ उड़ाने के लिए।

    मैं माफ़ी चाहता हूँ उन लड़कों को दरिंदा बनाने के लिए,

    मेरी बेटी जिनके लिए मांस का निवाला है।

    मैंने रची है अन्याय की पराकाष्ठा।

    मैंने रचा है अल्लाह और ईश्वर का भ्रम।

    अब औरतों को रचना होगा इन सबसे मुक्ति का सैलाब।

    स्रोत :
    • रचनाकार : फ़रीद ख़ाँ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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