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मध्यस्थ

madhyastha

डॉ. अजित

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डॉ. अजित

और अधिकडॉ. अजित

    कल तुम्हें फ़ोन किया

    फ़ोन स्विच ऑफ़ बता रहा था

    मैंने दुबारा मिलाया तो

    आउट ऑफ़ रेंज बताया गया

    जो मध्यस्थ मुझे

    तुम्हारे फ़ोन के बारे में बता रहा था

    उसकी आवाज़ इतनी शुष्क थी कि

    तीसरी दफ़ा फ़ोन करने की हिम्मत हुई

    हारकर एक एस.एम.एस. किया

    मगर उसकी डिलवरी रिपोर्ट नहीं आई

    कल तुम कहाँ थी

    ऐसा बेतुका सवाल नहीं पुछूँगा

    मगर कल जिस जगह तुम्हारा फ़ोन था

    वो दुनिया का सबसे भयभीत करने वाला कोना था

    हो सकता है ये चार्जिंग पर टँगा हो

    या फिर फ़्रिज के ऊपर हो

    ये तकिये के नीचे भी हो सकता है

    ख़ैर, कहीं भी हो मुझे क्या

    तुम्हारी चीज़ है

    मुझे पुलिसिया ढंग से

    पूछताछ करने का कोई हक़ भी नहीं

    मगर कल जब तुमसे बात हो पाई

    और मध्यस्थ पुरुष ने मुझे

    दो अलग-अलग बात बताई तो

    यकीं करो दोस्त!

    मैंने ख़ुद से ढेर सारी बातें कीं

    उन बातों में जगह-जगह तुम थी

    दरअसल, ऐसा करके

    मैं ख़ुद को भरोसा दिला रहा था कि

    फ़ोन ही तो नहीं मिल रहा है मात्र

    तुम एक दिन ज़रूर मिलोगी

    उस दिन तो बिल्कुल मिलोगी

    जिस दिन तुम्हारी सबसे सख़्त ज़रूरत होगी मुझे

    फ़िलहाल उम्मीद तुम्हारे फ़ोन के विकल्प के रूप में

    अपनी मेमोरी में सेव्ड कर ली है

    झूठ नहीं कहूँगा थोड़ा-सा डर भी है कि

    कहीं तुम्हारे फ़ोन की तरह ये भी किसी दिन

    स्विच ऑफ़ या आउट ऑफ़ रेंज मिले।

    स्रोत :
    • रचनाकार : डॉ. अजित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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