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मचान पर बंदर और हुसैन की सरस्वती

machan par bandar aur husain ki saraswati

प्रदीप सैनी

प्रदीप सैनी

मचान पर बंदर और हुसैन की सरस्वती

प्रदीप सैनी

और अधिकप्रदीप सैनी

    उन्हें नापसंद है

    हमारी आस्था का ढंग

    हमारी स्मृतियों का रंग

    वे इतिहास को संपादित कर रहे हैं

    उन्हें एतराज़ है

    हमारे सपनों की गंध पर

    पहनावे की पसंद पर

    वे सभी मसलों पर फ़तवे जारी कर रहे हैं

    वे तय कर रहे हैं पाठयक्रम

    हमें पढ़ा रहे हैं पाठ

    हमें अपनी तरह सभ्य बनाने पर उतारू हैं वे

    एक इमारत की तरह

    हमारे समूचे वर्तमान को ध्वस्त कर

    उसके अवशेषों पर वे

    भविष्य की नींव रखना चाहते हैं

    अपनी पूँछ में आग लगा

    ख़ाक कर देने को आतुर हैं वे

    हमारी आज़ादी का लहराता परचम

    जिस मचान से की जानी थी

    उन पर निगरानी

    इस वक़्त उस मचान के

    ठीक ऊपर हैं वे

    पर बंदर क्या जाने

    मचान में नहीं होता

    टहनियों का लचीलापन

    कि मोड़ लें जिधर चाहें

    वे गिरेंगे मचान से

    उछल-कूद करते-करते मुँह के बल

    और बहुत दिनों के बाद हँसेगी

    हुसैन की सरस्वती।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रदीप सैनी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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