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माँ अब बेटी की ढाल है

maan ab beti ki dhaal hai

पल्लवी मंडल

पल्लवी मंडल

माँ अब बेटी की ढाल है

पल्लवी मंडल

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    वो थी अपने घर परी के किरदार में

    चंचलता से पूर्ण घर की रोशनी के

    व्यवहार में...!

    बेशक रही होंगी वो भी किसी घर

    बंदिशों से आज़ाद, कुछ दायरों में असीमित

    माँ भी होंगी अपनी माँ की लाडली

    जो जिद्द करती होंगी

    जैसे हम उनसे किया करते हैं...!

    कभी हमारी तरह रही होगी माँ

    ख़ुली ज़िंदगी को जीने वाली

    “बोल के लब आज़ाद हैं तेरे”

    नारा को पसंद करने वाली

    घूँघट को आज के परिवेश में ग़लत कहने वाली

    वो रही होगी हमसे बेहतर, बहुत बेहतरीन...!!

    लेकिन आज माँ को बाँध दिया चुटकी भर सिंदूर ने

    लाल बिंदी, हरी चूड़ी और कुछ ख़ानदानी ज़ेवर ने

    इससे भी नहीं हुई संतुष्टि और माँ को ढक दिया गया

    बारह हाथ के साड़ी के पल्लू ने

    उनको छुपा दिया चारदीवारी में

    जहाँ वह जी रही सिर्फ़ बच्चों और पति के लिए

    शेष अपने परिवार के लिए

    उनकी ख़्वाहिशों को धर्म रूपी जंग ने जकड़ लिया

    क्या थी उनकी पहली या आख़िरी उड़ान

    इन सवालों ने कभी जन्म ही नहीं लिया...!

    अब वह अडिग हैं, निष्ठुर है

    स्ट्रिक्ट है, पॉज़िटिव है

    वह माँ अब बेटी की ढाल है...!!

    कि नहीं बने उनकी बेटी कुछ मामलों में

    उनकी तरह

    ये अब उनका ख़्याल है...!!

    स्रोत :
    • रचनाकार : पल्लवी मंडल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
    • संस्करण : 2023

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