क़ब्रगाह के टीलों
उसके पास की हरियाली
लंबे पेड़ों में
कुछ ताक़तवर कुत्ते
उछल रहे हैं
कुछ अवकाश-प्राप्त बूढ़े
अपनी ख़ाकी पैंटों में चुस्त
अपनी धुँधली आँखों से
उन्हें देखने की कोशिश कर रहे हैं
लेकिन कमबख़्त
जब कभी अपने ज़ख़्म की बात होती है
तो दिमाग़ में एक मरगिल्ला कुत्ता
कौंधता है
सारे मोहल्ले का कूड़ा सूँघता हुआ
लोग रोटी के लिए जिसे आता देखकर
अक्सर ईंट उठा लेते हैं
ज़ख़्म की वह एक तेज़ लकीर थी
जो दाईं तरफ़ से अँधेरे में उठकर
बाईं तरफ़ की सड़क के कीचड़ में
खो गई
ताक़तवर आदमी और कुत्ते
याद आते हैं
बादल और पानी के ख़यालों के बीच
किस तरह से वे तुम्हें नोच लेंगे
गर्मियों की ठंडी सुबह के
कुछ शानदार कुत्ते
जो पट्टों में अपने मालिकों के साथ निकलते हैं
एक पुलिस कैंप के तंबू की रस्सी के घेरे के नज़दीक
कुछ आवारा कुत्ते
सिर्फ़ उछलते हुए दिखते हैं
ज़ख़्म कहीं से तो आया है
पेट और दिमाग़ का जो बार-बार
रिश्ता बनाता है
सूई है कि हर बार ग़लत नस में
धँस जाती है
ताक़तवर आदमियों की एक पूरी भीड़
दिखाते हुए
किसी मरियल कुत्ते के
ज़िंदा रहने पर
आश्रित ज़िंदगी
जबकि लोगों के हाथ में
हर वक़्त
ईंट का एक अद्धा हो।
- रचनाकार : विनोद भारद्वाज
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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