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लुका-छिपी

luka chhipi

बबली गुज्जर

बबली गुज्जर

लुका-छिपी

बबली गुज्जर

और अधिकबबली गुज्जर

    इतनी गूढ़ बातें करेंगी आँखें

    तो कौन समझेगा टीस?

    पर कौन जाने सरल होने के अपराध की सज़ा

    धूप मुट्ठी में क़ैद कर लेना चाहते हैं लोग

    ये दुनिया तेरे क़ाबिल नहीं जानाँ

    एक छोटी उँगली में फँसी रही

    उसकी उँगली रात भर वादा करती

    इतने से भरोसे के सहारे

    कौन चला जाता है इतनी दूर

    मैंने कभी नहीं कहा उससे

    मेरे जीवन में आए, फिर भी वह आया

    मैंने कभी नहीं कहा उससे

    मेरे हाथों को थामे

    वह देर तलक़ बैठा रहा

    कसकर जकड़े हथेलियाँ

    ये सच था कि प्रेम केवल

    लत पड़ जाने तक ही साथ रहता है

    ये और भी सच कि लड़कियाँ

    दुःख पाल कर लेती पहाड़-सा जटिल

    देर शाम सुबकती है रोशनी मद्धिम

    सिसकती है शाम आते-आते

    मैंने जोड़-जोड़ मौन तुम्हारा

    मन की पुरानी-सी बात सुनी

    मैंने छोड़-छोड़ मान अपना

    तारों के सहारे पूरी रात चली

    मैं सदैव लुका-छिपी में हारी रही

    नहीं आते थे उस खेल के नियम

    ख़ुद निकल बाहर खड़ी होती सदा

    इस आस में कहीं कोई बिसराकर मुझे

    चल पड़े किसी नई राह

    मैं ढूँढ़ती रही ताउम्र

    पूरा हुआ वह खेल कभी

    तुम निहायत ही पक्के खिलाड़ी रहे

    एक बार ऐसे छिपे कि फिर कभी मिले ही नहीं

    स्रोत :
    • रचनाकार : बबली गुज्जर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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