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बीनियाँ और धामन

biniyan aur dhaman

सुमन मिश्र

सुमन मिश्र

बीनियाँ और धामन

सुमन मिश्र

और अधिकसुमन मिश्र

    देखो तो यह ज़िंदगी है इक रेगिस्तान।

    सुख दुख के गिरिदाब में फँस बैठा इंसान॥

    देखी है बस तीरगी अपने घर के बीच।

    गर्भ से लेकर गर्भ तक रहे तीरगी सींच॥

    गर्भ में रेगिस्तान के, अपने फन को काढ़।

    धामन बैठा रेत पर, रेत रहा है झाड़॥

    रेत का ये संसार है, लेता जीवन सोख।

    ख़ुदा लगाए सोख़्ता, जैसे भरती कोख॥

    रेत थलाँ पर बैठकर, अपना आप छिपाय।

    कोई जीवन जल चला, अपनी राह बनाय॥

    धामन चलता रेत पर, बनता जाए निशान।

    चला ढूँढ़ता बीनियाँ, तहरीरें पहचान॥

    जहाँ मिट गये, रेत के धारीदार निशान।

    यहीं कहीं धामन छिपा, बोला चतुर सुजान॥

    सब राहें जब ख़त्म हों, और बैठो थक हार।

    वहीं से तुमको छाँटता, चुनता सिरजनहार॥

    सबके भीतर है कोई, जिससे सब अनजान।

    जिसका जैसा रास्ता, वैसी हो पहचान॥

    कहे बीनियाँ मिल गया, रस्ते एक चिराग़।

    और वह ढूँढ़न चल पड़ा, कहाँ है बैठी आग॥

    सौत सरमद बैठकर, बिल के पास बजाय।

    मुर्शिद आज मुरीद को, देखो रहा रिझाय॥

    धामन अंदर बैठकर, सुनता अनहद राग।

    दिल में फिर से जल पड़ी, ठंडी पड़ती आग॥

    जैसे पत्ते डोलते, प्रेम शजर के बीच।

    धामन झूमे सरापा, बीन की धुन पर रीझ॥

    धीरे धीरे बीन का बढ़ने लगा प्रभाव।

    भींज गया था प्रेम में, धामन ठाँव कुठाँव॥

    बाहर आता देख कर, मुर्शिद हँस हँस जाय।

    आय फँसोगे प्रेम में, जितना करो उपाय॥

    दीवानापन देखिये, मुर्शिद बीन बजाय।

    और मुरीद को झूमना, मुर्शिद रहा सिखाय॥

    धामन वेगहि भागता, जैसे जलती लाट।

    जो पाया सब दे दिया, लिया हाथ पर काट॥

    हँसता हँसता बीनियाँ, रहा ज़हर को चूस।

    प्रेम रखा विष दे दिया, बहुत बड़ा कंजूस॥

    आगे बढ़ कर पीर ने, पकड़ा फन को हाथ।

    छूटे से छूटता, यह जन्मों का साथ॥

    फन को पकड़ उखाड़ता, धामन के विषदंत।

    जैसे पहले द्वेष को, वेगहि मारे संत॥

    प्रेम पिटारी रख लिया, धामन को मुस्काय।

    प्रेम पिटारी चल पड़ी, ऊपर देव सहाय॥

    प्रेम पिटारी बैठ कर, धामन रहा कराह।

    गाता जाय बीनियाँ, बड़ी कठिन है राह॥

    शब बीती जैसे कई जनम गये हों बीत।

    ख़ुद में कोई और है, ऐसा हो परतीत॥

    सहर हुई तब पीर ने, दिया पिटारा खोल।

    फिर से धामन ने सुने, वही बीन के बोल॥

    धीरे धीरे मिट चले, झूठे सभी निशान।

    धीरे धीरे हो चली, मुर्शिद से पहचान॥

    दूध कटोरी पास में, गया बीनियाँ छोड़।

    धामन बैठा पी रहा, कीट पतंगें छोड़॥

    दिल की भाषा एक है, दो दिल लेते जान।

    हो जाती बिन कहे, जन्मों की पहचान॥

    मुर्शिद बैठा रात भर, गाता धुनी रमाय।

    धामन में भी रात भर, कोई जाय समाय॥

    धुन लागी तब जानिये, बाक़ी जग वीरान।

    बीन की धुन में बस गई, जा धामन की जान॥

    कहे बीनियाँ एक ही ग़लती करे जहान।

    दूजों को पहचान ले, ख़ुद से हो अनजान॥

    ख़ुद को ही जब पता, तुझमें तेरा कौन।

    दूजों में फिर कौन है, पहचानेगा कौन॥

    जब धुन अंदर फूटती, तब आता है ज्ञान।

    अंतर धुन को सुन ज़रा, कर अपनी पहचान॥

    कहे बीनियाँ सुन धामना! यह तन सुंदर साज।

    अनहद फूटे हर घड़ी, बाज सके तो बाज॥

    धामन की पीड़ा बढ़ी, ख़ुद तड़पे ख़ुद रोय।

    ख़ुद से ही अनजान है, ख़ुद में बैठा सोय॥

    ख़ुद को खो कर पा लिया, मुर्शिद दिल में ठाँव।

    धामन को आवाज़ दे, अब अनहद का गाँव॥

    मुर्शिद आलीशान ने लिया मामला जान।

    मुँह से कहे बीनियाँ, बैठा चतुर सुजान॥

    एक पिया संसार का, सोई सिरजनहार।

    एक समंदर सौ नदी, अनगिन उसकी धार॥

    मुर्शिद तीरंदाज़ है, बीन धनुष और बाण।

    धामन फल है शाख़ का, जिस विध सब सामान॥

    जैसे मछली जल बिना, पल भर जी पाय।

    धामन सच्चा संत वह, जिसकी आस ख़ुदाय॥

    बीन पिया के हाथ में, झूम रहा संसार।

    एक पिया संसार का, धामन कहे पुकार॥

    जब अनहद की बात हो, मनवा दे मुस्काय।

    चुप रहिये चुप साधिए, दूजा नहीं उपाय॥

    सब सुनने की बात है, कुछ कहने की नाहिं।

    जो कहिये बेमोल है, दिन ढलता दिन माँहि॥

    कहे बीनियाँ धामना! काटे फ़सल किसान।

    सुख दुख जब झड़ने लगें, फ़सल पकी तब जान॥

    भटका फिरता सब जहाँ, दिल मे तेरे ख़ुदाय।

    धामन शजर का सब्र देख, खड़ा खड़ा सब पाय॥

    दिल दरिया दरियाव है, गौहर रखे छुपाय।

    धामन बाहर कुछ नहीं, भीतर सभी उपाय॥

    मन के राखे ज़िंदगी, मन के राखे मौत।

    धामन जब मन में पिया, सुख दुख दोनों सौत॥

    धामन इस संसार का सीधा एक निचोड़।

    जितनी छोटी चाहतें, उतनी लंबी दौड़॥

    धामन दुखिया ये जहाँ, सुख की आस लगाय।

    सुख दुख खूँटी टाँग दे, सबसे सरल उपाय॥

    मन की शाख़ फुलाय के, बिड़वा गयी चबाय।

    धामन आस निरास है, ख़ुद बोवे ख़ुद खाय॥

    कहे बीनियाँ धामना! खेल परम का खेल।

    ख़ुद को जाय छुपाय दे, फिर साहेब का मेल॥

    धामन को लेकर चला, मुर्शिद रेगिस्तान।

    छोड़ के वापस गया, जगह सही पहचान॥

    रेत थलाँ से रही, कहीं एक आवाज़।

    मरी रेत पर देखिये, जीवन नाचे आज॥

    हर शै में था बीनियाँ, देखे धामन आज।

    रेत थलाँ से रही, अनहद की आवाज़॥

    किसी रूहानी कण ने भेजा, मुर्शिद को संदेश।

    नाच रहा कोई यहाँ, धरकर तेरा भेस॥

    मुशिर्द आया लौटकर, अबके ख़ाली हाथ।

    अनहद धुन पर झूमते, इक दूजे के साथ॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुमन मिश्र
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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