लोग घूम रहे हैं
जेबों में ‘थ्री नाइट्स’ डाले हुए
मृत्यु उगल देते हैं लोग : कृत्रिम स्वादों में :
बेहिसाब : लगातार
लोग घूम रहे हैं
ओ! भर्तृहरि तुम्हारे कथनों की ताज़ा याद
मौक़ों पर मौक़े? लेकिन जगह नहीं मिलती रहस्यमय संकेतों में
बिंब : सिगनल्स या इशारे
भीड़ : बसों में या दुकानों में एक ख़ास कोने से देखते हैं
अनेक कोण : मृत्यु से पराजय का निश्चय भी छोटा हो उठता है।
खड़ी है सिर्फ़ कपड़ों की हल्की सरसराहट
पारदर्शी कपड़ों के भीतरी दृश्य
झूठे परिकल्पित संयोग।
विराट नगरों : विराट निर्माणों : बड़े अस्पतालों में
नसों का आख़िरी जीवन आख़िरी चीख़-पुकार—
जेबों में हाथ, उलझी फिसलनों में तबाह होते हैं
चेहरे तबाह होते हैं ख़याल
अँधेरी सड़कों के कोनों पर लिपटे हुए गृहविहीन पनपते प्यार
छोटी 'लेनों' के वृक्ष-तनों से सटे पूरे शरीर
गर्म-गर्म दीवारों पर आलिंगित कोमलांग :
पूरी शताब्दी को गाली उच्चारते : छोटे-छोटे हाथ
अपनी अक्रियाओं में रत
तमाम दुपहरियों से परास्त : ठंडे शरीर
शामों से आक्रांत, थके, ढीले अनमने आकार
जीवन के एक दंशन के लिए
घूम रहे हैं चक्षु-मैथुन-रत अतृप्त
बड़ी बातों में : 'पालिसी फ्रेमर' : अधकचरे राजनीतिज्ञ
बड़ी बातों में कुर्सियों पर टिके
अभव्य के प्रति आश्वस्त : मौक़ों की तलाश में
जीवन के एक दंशन में मामूली परीक्षा में—प्रतीक्षित...
- पुस्तक : विजप (पृष्ठ 19)
- रचनाकार : गंगाप्रसाद विमल
- प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
- संस्करण : 1967
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