एक चिट्ठी ज्योति बेटी के नाम

ek chitthi jyoti beti ke nam

सुभाष राय

सुभाष राय

एक चिट्ठी ज्योति बेटी के नाम

सुभाष राय

और अधिकसुभाष राय

     

    पंद्रह वर्ष की ज्योति पासवान के लिए जो तब सुर्ख़ियों में आई, जब कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान वह लगभग बारह सौ किलोमीटर साइकिल चलाकर गुरुग्राम से बिहार के अपने पुश्तैनी गाँव पहुँची थी। ज्योति का गाँव बिहार के दरंभगा ज़िले में है। यह भी ग़ौरतलब है कि यह यात्रा ज्योति ने अपने घायल पिता मोहन पासवान को साइकिल के कैरियर पर बैठाकर की।

    ज्योति बेटी! वे तुम्हें खोज रहे हैं
    साइकिलिंग का मौक़ा देना चाहते हैं
    लेकिन अभी वे तुम्हारी परीक्षा लेंगे
    और पास हो जाओगी तो अपने पत्ते खोलेंगे
    तुम्हारे साहस पर, तुम्हारे इरादे पर
    अभी उन्हें भरोसा नहीं है

    वे सारी लड़कियों को मौक़ा नहीं देते
    उन्हें आम बच्चियों की चिंता नहीं है
    तुम भी आम होती
    पिता की निरुपायता पर रोती
    और रोते-रोते मर जाती
    तो उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
    उन्होंने तुम्हें फ़ोन किया
    क्योंकि तुमने असहायता को ठुकरा दिया
    असंभव को संभव कर दिखाया

    गुरुग्राम से दरभंगा तक
    बारह सौ किलोमीटर सिर्फ़ सात दिन में
    घायल पिता को कैरियर पर लादे
    साइकिल से
    बेटी! यह कोई साधारण बात नहीं है
    यूँ ही इवांका मुग्ध नहीं हैं तुम पर
    बात इतनी सरल नहीं है
    जो तमाम लोग तुम्हारी पीठ थपथपा रहे
    ये जो अपना मुकुट तुम्हारे क़दमों में डाल रहे
    ये तुम्हारा सम्मान नहीं करते
    ये तुम्हारे इरादे से डरते हैं

    तुमने देखा नहीं
    जब लाखों लोग भूख-प्यास, थकान और
    मौत को चुनौती देते हुए सड़कों पर निकल पड़े
    तब भी वे डर गए थे
    वे हर मज़बूत इरादे से
    हर अबाध संकल्प से डर जाते हैं
    तभी तो लोग रास्ते में मरते रहे
    घायल होते रहे, ख़ुदकुशी करते रहे
    और वे ख़ामोश सब कुछ देखते रहे

    उन्हें तुम्हारे नाम से तब तक कोई परेशानी नहीं 
    जब तक वे उसके मायने नहीं समझते
    तुम्हारे पिता ने तुम्हारा नाम यूँ ही नहीं रखा होगा 
    नाम रखते हुए उन्हें अपने चारों ओर पसरे
    गहरे अँधेरे का एसास ज़रूर रहा होगा
    अँधेरा नहीं होता तो वे इतनी दूर
    दिल्ली में आकर रिक्शा नहीं खींचते 
    बेशक उन्हें उजाले की दरकार थी
    इसीलिए उन्होंने तुम्हारा नाम ज्योति रखा
    और तुमने उनकी उम्मीद को अर्थ दिया
    तुम थी तो मुश्किल वक़्त में पिता की
    ज़िंदगी में साँसों का उजाला बचा रह गया  

    सावधान रहना बेटी!
    जब भी कोई साहस, कोई इरादा, कोई रोशनी
    दिखती है, वे डर जाते हैं
    और कोई जाल बुनने लगते हैं

    मुझे अच्छा नहीं लगा तुम्हारा ये कहना
    कि तुम बेटी नहीं बेटा हो
    बेटी बने रहना
    बेटी होना कोई कमतर होना नहीं है
    बेटी होकर तुमने जो कर दिखाया है
    उससे बेटियों का माथा चौड़ा हुआ है
    सिर्फ़ चौदह साल, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है
    अभी हो सके तो पढ़ना, लिखना
    अपने भीतर रोशनी जमा करना
    अवसर मिले तो बच्चों को ऐसी कहानियाँ सुनाना
    जो उनमें जीवन के पक्ष में खड़े रहने का
    साहस पैदा कर सके

    बहुत प्रशंसाओं से भटक मत जाना
    बहुत प्रस्तावों से भी गुमराह मत होना
    कुछ समझ में न आए तो बुधिया को याद करना
    उसने साढ़े चार साल की उम्र में मैराथन पूरा किया
    पुरी से भुवनेश्वर तक की पैंसठ किलोमीटर की दूरी
    महज सात घंटे में पूरी की
    जैसे तुम्हारी हिम्मत देख वे दंग हैं
    उसी तरह तब भी पगला गए थे सब के सब
    फ़िल्म बनी 'बुधिया सिंह बॉर्न टु रन'
    उसे बहला-फुसला कर ले गए वे ट्रेनिंग के लिए
    हॉस्टल में डालकर भूल गए
    और फिर कभी बुधिया
    लौट नहीं सका मैराथन में

    सुनो! कोई भी दिक़्क़त आए
    तो बोलना, चुप मत रह जाना।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुभाष राय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए