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लेनिन के लिए

lenin ke liye

सतीश कालसेकर

सतीश कालसेकर

लेनिन के लिए

सतीश कालसेकर

और अधिकसतीश कालसेकर

    घनघोर और बरसाती रात

    समूचे महानगर में फैला हुआ अंधकार

    और उसके भीतर से आती हुई रोशनी

    इस महानगर में भी झींगुर गाते हैं

    एकाग्र होकर अपना गीत

    आज यह महसूस हुआ पहली बार।

    लेनिन, मैंने नहीं देखीं कभी इस महानगर के

    उदर में बिखरी हुई जटिल उलझनें ठीक से,

    मैंने नहीं की मुसाफ़िरी मस्ती में

    मुक्त होता चला गया फिर भी

    इस महानगर की गंदी बस्तियों में,

    मेरी आँखों पर चश्मा वैसा ही रह गया

    निरंतर धुँधला

    लगातार टपकती हुई बारिश जैसा

    और मैं मुड़ गया

    अपने सभी पूर्व कर्म पीठ पर बाँधे हुए

    कविता-पंक्तियों के ज़रिए।

    व्यवस्थावादियों से जूझते हुए।

    तो लेनिन,

    मैंने विद्रोह किया कविताओं की पंक्तियों में

    अपने साफ़-सुथरे कपड़ों के साथ

    औन उन पंक्तियों को लेकर

    जिस समय मैं पहुँचा

    विद्रोह के अगले चरण तक

    तब समझ में आया

    कि व्यवस्था के गले में नाख़ून लगाते ही

    वह झपट्टा मारती है

    किसी घिरी हुई बिल्ली की तरह

    सीधे तुम्हारे गले पर।

    तब मैं और मेरी कविता

    दोनों बदलते गए पंक्ति-दर-पंक्ति

    और मैं तुम्हारे पीछे गया

    अपनी पीठ के सभी ज़ख़्म

    सँभाले हुए पीठ पर और पेट पर

    और तुम्हारे साथ सीखता चला गया

    अपने बारे में और अपने

    परिवेश के बारे में

    पहली बार।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साठोत्तर मराठी कविताएँ (पृष्ठ 90)
    • संपादक : चंद्रकांत पाटील
    • रचनाकार : सतीश कालसेकर
    • प्रकाशन : साहित्य भंडार
    • संस्करण : 2014

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